जय श्रीमन्नारायण
ध्यान दें मथुरा में तो कारागार है परंतु भगवान श्रीराम जी की पावन नगरी में कारागार नही है जबकी वह सम्राट थे चक्रवर्ती राजा थे
*कारण स्पष्ट है*
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*बाढ़े खल बहु चोर जुआरा।जे लंपट परधन परदारा*।।
मानहिं मातु पिता नहिं देवा।
साधुन्ह सन करवावहिं सेवा।।
जब धर्म की हानि हो,
शुभ कर्म रोक जिए जाएं,
तो समाज को लाभ नहीं बल्कि हानि होती है।
जिन्हें पूजा पाठ में समय व्यतीत करना समय की बर्बादी लगती है तो दिन रात दुआ खेलने वाले के वृद्धि देखना पड़ता है... बाढ़े खल बहु चोर जुआरा।
और यदि धार्मिक अनुष्ठान में धन की बर्बादी लगती है उनके लिए जेलखाने छोटे पड़ जाते हैं।
और एक महत्वपूर्ण बात ये है कि यदि रामराज्य में कारागृह की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि ना कोई अपराध करता और न दंड देने की आवश्यकता...
*दंड* जतिन्ह कहँ भेद जहँ, नर्तक नृत्य समाज।
जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज।।
जब दंड दडी स्वामी लोगों,यतियों के हाथ के अतिरिक्त है ही नहीं फिर कारागार की क्या आवश्यकता?
जहां पक्षी भी पिंजरे में बंद नहीं किए जाते ...
नाना खग बालकन्ह जिआए।
बोलत मधुर उड़ात सुहाए।।
वहां के मनुष्य के लिए बंदीगृह की क्या आवश्यकता??
जहां के राजा तपस्वी हो ...सब पर राम तपस्वी राजा,
जहां के राजा एकपत्नीव्रत का पालन करता हो,
जहां के प्रजा अपने राजा के अनुसार एकपत्नीव्रत हो..
एक नारि ब्रत रत सब झारी।
जहां की हर स्त्री पति हितकारी हों...ते मन बच क्रम पति हितकारी।।
वहां लंपट लफुआ कहां से रहेंगे?
जहां के राजा पराई स्त्री पर कभी कुदृष्टि डालने को सोचता भी नहीं हो..
रघुबंसिन्ह कर *सहज सुभाऊ*।
मन कुपंथ पगु धरइ न काऊ।।..
*नहिं पावहिं परतिय मनु डीठी*।।
एक भी ऐसा प्रमाण नहीं है कि रघुवंशी कभी पराई स्त्री पर बुरी दृष्टि रखे हों,
वहां कारागृह की क्या आवश्यकता??
और दूसरा वहां जहां सतोगुणी अर्थात् अच्छे लोगों को बंदीगृह में रखा जाता हो...
रावन नाम सकल जग जाना।लोकप जाकें बंदीखाना।।
वहां जहां के राजा ही जब पराए धन संपत्ति पर, पराई स्त्री पर कुदृष्टि डालने में प्रसिद्ध हो,
जो स्वयं कुमार्ग पर चलता हो,
स्वयं पराई स्त्री का चोरी करे तो फिर प्रजा में कोई ऐसा करे उसके लिए बंदीगृह क्यों रखेगा?
*निसिचर निकर नारि नर चोरा*
तो जो सबसे अधिक चोरी करेगा उसे पुरस्कार मिलेगा कि नहीं?
*बरन बरन बिरदैत* - ये क्या है!!!!
अतः जो ये कहते हैं कि धर्म से क्या लाभ है,
नीति पथ पर चलना क्यों आवश्यक है,
उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि एक धर्म और दूसरा नीति ही है जो पापकर्म से,अन्याय करने से रोकता है।
अतः जब अधर्म की बोलबाला हो जाए,
अनीति पर चलने वाले बढ़ गए,
तो समझिए कि उस राज्य/देश शासन प्रशासन में दोष अवश्य है।
इसलिए यथा राजा तथा प्रजा...
बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा।।
क्या धर्म संस्कार हीन होने पर (मातृवत परदारेषु की भावना क्षीण होने पर) केवल कठोर कानून बनाने से काम चलेगा?
इसलिए कारागार विकसित करने से अधिक महत्वपूर्ण है संस्कार विकसित करना...🙏🙏🙏
सीताराम जय सीताराम
सीताराम जय सीताराम