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*जय श्रीमन्नारायण*
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*श्री राधे कृपा हि सर्वस्वम*
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*सनातन संस्कृति एवं त्योहार*
समस्त मित्रों एवं श्रेष्ठ जनों को दीपावली गोवर्धन पूजा यम द्वितीय की हार्दिक शुभकामनाएं यह पावन पंच पर्व जन-जन में ज्ञान अन्न धन से परिपूर्ण करें यही कामना है आज पावन दीप मालिका एवं गोवर्धन पूजन व्रत त्योहार मनाया गया हमारी भारत भूमि सनातन धर्म आदिकाल को अनेकों अनेक धार्मिक परंपराओं की भूमि है यह सभी व्रत त्यौहार उत्सव जो आदिकाल से चले आ रहे हैं यह में समरसता एकता अखंडता का उपदेश देते हैं इसमें सहयोगी होते हैं त्योहार मनाने का मतलब सामूहिक रूप से एकत्र होकर हर्षोल्लास के साथ ईश्वरीय शक्ति का ध्यान करते हुए आनंदित होकर समय बिताना इस समाज में व्यस्तता ओं के चलते बिना किसी बहाने के सभी एक साथ इकट्ठे नहीं हो पाते हमारे पूर्वजों ने सनातन धर्म ने शास्त्र ने ऐसे ऐसे त्यौहार उत्सव तैयार किए जिनमें ईश्वर आराधन के साथ हमारे प्रकृति एवं सामाजिक संरक्षण एवं उसके प्रेम को प्रदर्शित किया लेकिन आज के समय में यह सब केवल एक दिखावा मात्र रह गए हैं आज व्रत त्यौहार एकता अखंडता ईश्वर आराधन प्राकृतिक संरक्षण इनके लिए नहीं अपने धन वैभव एवं इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण अपने आप को अत्यधिक मॉडर्न प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है:- मै आचार्य हर्षित कृष्ण शुक्ल" बड़े दुख के साथ यह कहता हूं कि आज त्योहारों में उल्लास प्रेम दिखाई नहीं पड़ता दिखाई पड़ता है तो केवल सिर्फ और सिर्फ पाश्चात्य शैली से भरा दू संस्कार इसको क्या कहें ऐसा क्यों होता है इसका कारण है हमारे संस्कारों का हनन होना संस्कारों को त्याग देना सनातन धर्म को त्यागना जिसके कारण हम ना तो पूर्ण रूप से विदेशी परंपराओं को अपना पा रहे हैं और ना अपनी परंपराओं को त्याग पा रहे वह परंपराएं कैसी जिम में न तो लज्जा है शर्म है न मर्यादा है क्या हम अंग प्रदर्शन को अपनी प्रतिष्ठा समझते हैं त्योहारों में उत्सव में आजकल जो लोग वस्त्र आभूषण धारण करते हैं उनमें उनकी अधिक से अधिक यह धारणा होती है जितने ही कम वस्त्र पहने जाएं उतने ही अधिक सुंदर और मॉडर्न होंगे लेकिन यह केवल भ्रम मात्र है सुंदरता वस्त्रों से नहीं सुंदर सुंदरता आभूषणों से नहीं सुंदरता अंग प्रदर्शन से नहीं सुंदरता संस्कार मर्यादा और सेवा से होती है सनातन धर्म आदि से लेकर के अब तक सिर्फ और सिर्फ संस्कार ही देता आया है क्षमा चाहूंगा लेकिन दुख तब होता है जब माता-पिता अपने बच्चों को सनातन संस्कार देने के बजाय पाश्चात्य संस्कार प्रदान करते हैं और उसके बाद स्वयं यह उलाहना देते हैं हमारे बेटे हमारी बेटी हमारा कहना नहीं मानती हमारा सम्मान नहीं करते हाथ से निकलते जा रहे हैं संस्कार तो आपने ही दिए हैं मैंने यहां तक देखा है हमारे ब्राह्मण बंधुओं जो अपने आपको ब्राह्मण कहते हैं विद्वान हैं वह स्वयं में यह नहीं जानते उपनयन यज्ञोपवीत संस्कार कब और क्यों किया जाए इसका मतलब क्या होता है हम अपने बच्चों को बचपन में यज्ञोपवीत नहीं कर सकते कारण देते हैं कि वह अबोध है पढ़ाना उसको नेशनल स्कूल में चाहते हैं गुरुकुल में भेजना नहीं चाहते फिर वह संस्कार जाने का कैसे नेशनल स्कूल में इंग्लिश माध्यम के स्कूल है उनमें माता पिता का सम्मान नहीं सिखाया जाता वहां सनातन धर्म नहीं बताया जाता फिर यह क्यों सोचते हो कि हमारी बालक हमारे बच्चे हमारे धर्म को नहीं समझ सकते जब वह छोटी आयु में ईसाई पद्धति में पढ़ सकते हैं सीख सकते हैं जिसका हमसे सदियों तक कोई नाता नहीं रहा कभी कोई नाता नहीं रहा आदि से लेकर के आज तक हम नहीं पद्धति सिखा सकते हैं फिर अपने संस्कारों के समय अपने ही बच्चे को अबोध मान लेते हैं क्यों अधिक न कहते हुए निवेदन करना चाहूंगा समस्त बंधु जनों से सनातन प्रेमियों से इस टीवी धारावाहिक फिल्म से बाहर निकल कर अपनी वास्तविक परंपरा अपने संस्कार उनको अपना करके अपने बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें सुखी जीवन जिए आनंदित रहें निवेदन है
*पहनकर हार फूलों का तिलक चंदन नहीं करना* *हमें पश्चिम हवाओं का अभिनंदन नहीं करना*
*हमारी सभ्यता और संस्कृति महफूज रहने दो*
*यह भारतवर्ष है प्यारे इसे लंदन नहीं करना*
*जय जय श्री राम जय श्रीमन्नारायण जय जय श्री राधे*
*आचार्य*
*हर्षित कृष्ण शुक्ल*
*प्रवक्ता*
*श्रीमद् भागवत कथा एवं संगीतमय श्री राम कथा लखीमपुर खीरी*
*(उत्तर प्रदेश)*
*संपर्क सूत्र :- 9415 21 6987*