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*श्री राधे कृपा ही सर्वस्वम*
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*जय श्रीमन्नारायण जय जय श्री सीताराम*
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*सुखी जीवन के लिए क्षमा करना सीखें*
सामाजिक जीवन में राग के कारण लोग एवं काम की तथा द्वेष के कारण क्रोध एवं पैर की वृत्तियों का संचार होता है क्रोध के लिए संघर्ष कला का वातावरण बन जाता है खुद नहीं अहंकार एक उर्वरक शक्ति का काम करता है क्रोधी मनुष्य तप्त लव दंड के समान अंदर ही अंदर देखता एवं जलता रहता है उसकी मानसिक शक्ति नष्ट हो जाती है विवेक कार्य करना बंद कर देता है क्रोध के कारण कोई व्यक्ति दूसरे का उतना यही तो नहीं कर पाता जितना अपना कर लेता है समाज में जहां तक हमने अनुभव किया है जरा जरा सी बात में क्रोध आना देखा जाए कभी-कभी बिना बात के बिना कारण के व्यक्ति को क्रोध आता है अगर हम बाजार में देखें एक अहंकार का प्रतिबिंब नजर आता है जब व्यक्ति जिस वस्तु खरीदना चाह रहा हो तो उसे कोई और क्यों ले रहा है इतनी सी बात में क्रोध आ जाता है जबकि यह कोई बात नहीं है मामूली सी बातें हैं लेकिन इसमें स्पष्ट अहंकार का भाव प्रदर्शित होता है हम दूसरे से जो अपेक्षा करते हैं स्वयं वह नहीं करते अगर हमसे भूलवश कोई गलती हो जाए तुम सॉरी बोल देते हैं क्षमा मांगते हैं अपेक्षा करते हैं कि सामने वाला व्यक्ति उस बात का बुरा ना मान कर हमें क्षमा कर देगा लेकिन क्या हम वह करते हैं मैं:- आचार्य हर्षित कृष्ण शुक्ल" जहां तक मैंने देखा है और जो मेरा अनुभव है अगर व्यक्ति में क्षमा करने की शक्ति जाग जाए क्षमा करना सीख जाए तो बड़ी से बड़ी परेशानी बड़े से बड़ा संघर्ष उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता उसका जीवन उन्नत सुखी खुशहाल और आदर्श पूर्ण होगा अहंकार को त्याग कर क्षमा भाव को अपना लेना जीव मात्र का एक ऐसा हथियार है जो अपने शत्रु को भी अपने वश में कर लेता है अतः सुखी और समृद्ध जीवन के लिए क्रोध को त्याग कर क्षमा का शस्त्र धारण करें स्वयं खुश रहें और समाज को खुशी प्रदान करें क्षमाशील अभिमान होता है विनम्र होता है अत्यंत सहनशील होता है क्षमा कायरता नहीं है क्षमाशील व्यक्ति समर्थ सक्षम है दुख पहुंचाने वाले व्यक्ति को प्रताड़ित कर सकता है अपनी क्षमा वृत्ति के कारण बहुत दुख को सहन करता है विनम्र रहता है और एक आदर्श स्थापित करता है मान लिया जाए किसी ने हमारा बहुत ही घोर अपराध किया है हम उसे प्राण दंड देने के लिए तैयार है और उसको मार देते हैं विचार करो क्यों एक बार मैं मर गया वही अगर हम उसको क्षमा कर देते हैं तो जितनी बार वह सामने पड़ेगा हमें देख कर के शर्म से झुक जाएगा जितनी बार सामने पड़ेगा उतनी बार मरेगा क्योंकि झुके हुए सर में और कटे हुए सर में विशेष अंतर नहीं होता अब इसमें देखिए लाभ क्या है अगर हम उसको मार देते तो स्वयं भी अपराधी हो जाते और क्षमा कर दिया तो पहली चीज तो उस अपराध से बचे उसके बाद वह व्यक्ति भले ही प्रदर्शित न करें लेकिन हमारे प्रति कृतज्ञ रहेगा उसके मन में हमारे लिए द्वेष हटकर सम्मान का भाव बनेगा इसलिए इस अदृश्य हथियार से स्वयं भी बचें और दूसरों को भी बचे रहने दे यही आप सबसे निवेदन है क्रोध को त्यागे क्षमाशील बने और सुखी जीवन व्यतीत करें
*जय जय श्री राधे जय श्री सीताराम*
*आचार्य*
*हर्षित कृष्ण शुक्ल*
*लखीमपुर खीरी*
*(उत्तर प्रदेश)*