*जय श्रीमन्नारायण*
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*श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार तामिस्र आदि नरकों का वर्णन*
परम भागवत श्री नारद जी के पूछने पर भगवान श्रीमन्नारायण ने जो वर्णन किया बताया बोले हे नारद नर्कको की संख्या 21 बताई गई है कुछ *लोग कहते हैं कि यह 28 हैं क्रमशः तामिश्र, अंधतामिश्र, रौरव, महारौरव, कुंभीपाक*, *कालसूत्र, असिपत्र, शूकर मुख, अंधकूप* *कृमिभोजन,तप्तसूर्मी, संदंश*, *वज्रकण्टकशाल्मली*,
*वैतरणी,पूयोद, प्राणरोध, विशसन, लालाभक्ष*, *सारमेयादान, अवीचि, अयःपान,* *क्षारकर्दम,रक्षोगणभोजन, शूलप्रोत, दंदशूक,अवटा रोध, पर्यावर्तन और सुचिमुख यह 28 नाम वाले नर्क है जिनमें प्राणी अपने अपने कर्मों के* *अनुसार इन में आकर यातना भोगता है इसी प्रकार हे नारद अब मैं इसको विस्तारित वर्णन करता हूं जो दूसरे के धन स्त्री और पुत्र का* *अपहरण करता है उस दुरात्मा को यमराज के दूत पकड़ कर ले जाते हैं उन दूतों की आकृति बड़ी ही भयानक होती है उनके* *द्वारा काल पास में बंधा हुआ प्राणी यात्रा भोगने के लिए "तामिस्र" नामक नरक में गिरता है यमदूत हाथ में रस्सी लेकर प्राणी को पीटते हैं और* *तरह-तरह से दंडित करते हैं जो पुरुष किसी स्त्री के पति को धोखे में डालकर उसके साथ समागम* *करता है यमराज के दूत उसको "अंधतामिस्र" नामक नरक में गिराते हैं वहां गिरे हुए जीवो को असहाय पीड़ा होती है उसके नेत्र अंधे हो जाते हैं बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और वह जड़ से कटे हुए वृक्ष की भांति नरक में गिरते उसे किंचित मात्र देर नहीं होती इन्हीं विशेषताओं के कारण प्राचीन पुरुषों ने इस नरक का नाम "अंधतामिश्र" रखा है यह मेरा है और यह मैं हूं यू ममता रखकर जो* *दूसरे से द्वेष करता हुआ प्रतिदिन दूसरे को चोट पहुंचाने उसके कार्य को बिगाड़ने अपने कार्य को बनाने उस को नीचा दिखाने मानसिक शारीरिक आर्थिक रूप से परेशान करने के लिए चिंतित रहता है जो सोचता है दूसरा प्राणी किस प्रकार से दुखी हो हम से आगे न बढ़ने पाए हम से आगे न निकलने पाए जिसे दूसरे के दुख से सुख मिलता है ऐसे पुरुष को प्राणी को जो दूसरों को परेशान करके अपना और केवल अपने परिवार का भरण पोषण करता है* *उस प्राणी के लिए यह नरक बहुत ही भयावह है वह प्राणी मृत्यु के पश्चात अपने अशुभ कर्मों के प्रभाव से रौरव नामक* *नरक में गिरता है जिन प्राणियों के साथ उसने अशुभ व्यवहार किए हैं* *अथवा किसी का वध किया है वह प्राणी तब तक उस नर्क में *रूरू* *नामक जानवर बन कर रहते हैं जब तक वह प्राणी मर कर वहां नहीं* *पहुंचता और जब वह वहां पहुंचता है तब वे उसे अत्यंत क्लेश देते हैं। हे! नारद यह जानवर बहुत ही उग्र एवं सर से भी अधिक भयंकर होते हैं इसी प्रकार महारौरव भी है यात्रा भोगने के लिए दूसरा सूक्ष्म यातना शरीर पाकर पानी उस नर्क में जाता है मांस खाने वाले* *रूरू* *नामक जानवर* *उस नार की जीव के मांस में बहुत बुरी तरह चोट पहुंचाते हैं । हे नारद इसी प्रकार उग्र बुद्धि वाले मनुष्य जो निर्दई एवं जीव हत्या में प्रायः संलग्न रहते हैं पशु पक्षियों को मारकर उनके मांस को भक्षण करते हैं ऐसे व्यक्ति के मरने के उपरांत यमदूत उन्हें काल पास में बांधकर कुंभी पाक नामक नर्क में ले जाते हैं जहां सदैव बड़े-बड़े पात्रों में कड़ाहो में तेल* *खोलता रहता है जिसमें उस प्राणी को डालकर तब तक पकाया जाता है जितने रोएं उस पक्षी के शरीर में हैं जिसे उसने मारा था उतने ही हजार वर्षों तक वह व्यक्ति उस* *"कुंभी पाक"* *नर्क में* *पकता है हे देवर्षि जो प्राणी* __*पिता ब्राम्हण एवं गुरु*__* *से बैर* *रखता है उनके वचनों में संदेह करता है वह दुष्ट सूर्य एवं अग्नि से सदा संतप्त रहने वाले "काल सूत्र" नामक नरक में स्थान पाता है उसके भीतर भूख और प्यास की ज्वाला दहकती रहती है और बाहर से उसके शरीर को सूर्य अग्नि का प्रचंड ताप जलाता रहता है वह अत्यंत घबराकर कभी बैठता कभी लेटता कभी भागने की चेष्टा करता है कभी उठकर खड़ा होता है लेकिन उसका कोई भी प्रयास सफल नहीं होता इस प्रकार वह निरंतर कष्ट पाता रहता है*
क्रमशः---------
*श्रीमहन्त*
*हर्षित कृष्णाचार्य*
*श्री जगदीश कृष्ण श्रीवैष्णव शरणागति आश्रम*
*लखीमपुर- खीरी*