मसकते आज के रिश्तों में
समय की कमियां झलकती है।
जब टूटती है स्नेह की तुरपाई
फिर रिश्तो से कड़वाहट की बू आती है।
आधुनिकता के दौर के ये रिश्ते
अपने तरुनावस्था को भी न पार पाते है।
रिश्तों के ये बीज
अंकुरित होते ही मुरझा जाते है।
उच्च-नीच, दिखावे-छलावे की छांव में
क्या खाक पनपेंगे मधुर रिश्ते।
पनपने के पहले ही ये रिश्ते
धरा पर राख हो जाते है।
आनन्द/12012022