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पहाड़ों से उतरती हुई सरिता अपनी पूरी जोश में थी उसकी मधुर कल - कल की ध्वनि घोर गर्जना में परिवर्तित हो चुकी थी जीवों की प्यास मिटाने वाली आज उनकी जीवन मिटाने को उतारू थी। पिछले दो दिन से वो अपने रौद्र अवतार में थी मानो सबकुछ अपने उदर में समा लेना चाहती हो , उसकी लहरों के वेग मानव ,पशु ,पक्षी तथा वस्तुएं तिनके जैसे बह रहे थे । जीवनदायिनी साक्षात् विकराल काल का रूप धारण कर ली थी । धरमपुर निवासी भी इस प्राकृतिक आपदा से जूझ रहे थे ,पूरे गांव में पानी भर चुका था कच्ची सड़कें कटकर जलमग्न हो चुकी थी , खेतों की फसलें डूब चुकी थी ,चारो तरफ सिर्फ पानी ही पानी नजर आ रहा था ,लेकिन प्रकृति के आगे किसकी चलती है सिवाय इस आपदा को झेलने के कोई और चारा न था ।
सैकड़ों लोग बेघर हो चुके थे , उनके पास रहने के लिए कोई छत नहीं थी पहनने को कपड़े नहीं बचे थे ,फसलें नष्ट हो गई थी । किसान जन अपने फसलों की हालत देखकर खून के आंसू रो रहे थे । सड़के टूट चुकी थी जिससे आवागमन बाधित हो गया था ।सरकार द्वारा पहुंचाई जाने वाली सुविधाएं उन तक पहुंच नहीं पा रही थी । गांव में मौजूद एक पुरानी हवेली पर सभी लोगों के रहने के लिए व्यवस्था की गई थी। लेकिन गांव के लोगों की संख्या हवेली कि क्षमता से अधिक थी ,किसी तरह से सभी लोग एक दूसरे से चिपककर बैठे बैठे इस प्रकोप का मंजर देख रहे थे । गांव में बाढ़ का पानी अभी भी मौजूद था । गांव वालों को जैसे - तैसे रहने का शरण तो मिल गया था लेकिन खाने - पीने , पहहने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी । सरकार द्वारा हेलीकाप्टर से भेजी जानी वाली सामग्री पल भर में लूट हो जाती थी । बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे लेकिन माएं उनकी भूख मिटाने असमर्थ थी , भूख - प्यास से व्याकुल लोग बाढ़ की गन्दी पानी पीने को मजबूर हो गए थे ।बूढ़े और बीमार लोगों की हालत और भी जर्जर हो गई थी । पांच दिन में हवेली में काफी गंदगी भी हो गई थी , जिससे सामान्य लोगों को भी बहुत सारी दिक्कतें आने लगी थी । उनमें हैजा ,मलेरिया , टीबी जैसी बीमारियां फैलने लगी ।
तीन दिन बाद बारिश बन्द हो गई , काले बादल धीरे धीरे छटने लगे , पांच दिन बाद सूर्य ने फिर अपनी सुनहरी किरणों को धरमपुर की धरा पर बिखरा दिया। नदियों ने अपनी विस्तार और गति को समेटना शुरू कर दिया , गांव के खेतों ,तालाबों, में इकट्ठे जल में सूरज की रोशनी झिलमिल करती हुई स्वर्णमयी सुंदरता का उदाहरण प्रस्तुत कर रही थी लेकिन उस सौंदर्य को निहारने वाला कोई नहीं था , वो सौंदर्य गावं वालों के लिए एक श्राप के समान हो गई थी जहां उन्हें केवल बर्बादी नजर आ रही थी ।
छठवें दिन बाढ़ का पानी धीरे - धीरे कम होने लगा था लोग हवेली से अब अपने घरों में लौटने लगे थे ,जिनके घर उजड़ चुके थे वे अपने लिए घास - फुस की झोपड़ी तैयार करने लगे , लोग अपने खेतों में सड़ते आनाज को चुन - चुन कर लाने लगे थे , किसान अब भगवान के भरोसे बैठ गए क्योंकि पानी लगे खेतों में से साल भर का अनाज नहीं इकट्ठा किया जा सकता था । बाढ़ का प्रकोप अभी खत्म नहीं हुआ था कि पूरे बाढ़ग्रस्त इलाके में टीबी, हैजा जैसी बीमारियों ने अपना अधिकार जमा लिया , इलाज की सुविधाएं मौजूद न होने के कारण लोग अधिक संख्या में मरने लगे थे बूढ़े - बुजुर्ग को कौन पूछे यहां जब नौजवान और बच्चे की मृत्यु संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी । धरमपुर गांव के अस्पताल में मरीजों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ती जा रही थी वैसे ही श्मशान घाट पर शवों की बढ़ोतरी होने लगी थी ।
अस्पताल में एक 70 साल की बुजुर्ग औरत अपने हाथ बड़ी तेजी से चला रही थी वो सुबह से लगातार आने वाले मरीजों के इलाज के लिए साफ - सफाई कर रही थी । टीबी से पीड़ित मरीज जब खांसते - खांसते खून की उल्टी करने लगते तो वो बिना किसी हिचकिचाहट से मरीजों का मुंह साफ करती, उनके कपड़े को बदलती , मरीजों की घाव से बहते रक्त , पस ,उनके दस्त की साफ - सफाई करने में पूरी तरह से तल्लीन थी । उसके चेहरे पर किसी भी चीज के प्रति घिन्न या घृणा का कोई भाव नहीं था । उसकी मेहनत और सेवा की लगन देखकर सभी आश्चर्यचकित थे । गांव वाले भी आज उसके प्रति नतमस्तक हो रहे थे । बीमारियों की वजह से जिन मरीजों को उनके घर वाले भी उनके पास नहीं आते थे उन मरीजों को भी अपना मानकर उनकी देखभाल करने वाली ये महिला थी सविता काकी जो 40 साल पहले धरमपुर गांव में एक एनजीओ की तरफ से समाजसेविका बन कर आई थी और यहीं बस गई थी । गांव वालो ने कभी उन्हें सम्मान नहीं दिया उल्टा जितना हो सके उन्हें परेशान करने तरीका ढूंढ़ लेते थे क्योंकि गांव के कुप्रथा के खिलाफ अगर कोई शख्स बोलने की हिम्मत करता था तो वो थी सविता काकी ।इसलिए गांव वालों के आंखों की किरकिरी बन गई थी और पिछले 15 सालों से तो गांव वाले उनके जान के दुश्मन बने हुए थे लेकिन सविता काकी पुलिस और कानून की सहायता से और अपनी हिम्मत और समझदारी के बल पर इस गांव में टिकी हुई थी इतना सब के बावजूद भी वो कभी अपने कर्तव्य पथ से पीछे नहीं थी वो सदा लोगों की सहायता के लिए तत्पर रहती थी । उन्होंने कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की थी बल्कि हमेशा गांव के विकास के बारे में ही सोचा करती थी ।
आज इस विषम परिस्थिति में जब कोई किसी की सहायता के लिए हाथ नहीं उठा रहा था तो सबिता काकी प्रेम और करुणा से भरी मां के रूप में अपनी ममता की छांव सभी मरीजों को इस तपती धूप के सामान महामारी में शीतल छाया प्रदान कर रही थीं। इससे उनके चेहरे पर एक अलग ही ओज और संतुष्टि के भाव नजर आ रहे थे।
बाहर फिर किसी परिवार की रोने की आवाज आने लगी सविता काकी एक मरीज के शरीर के चादर डालती हुई जल्दी से बाहर गई ।बाहर जवाहर ओझा अपने 10 साल के बेटे को गोद में लिए हॉस्पिटल की ओर भागा आ रहा था उसके साथ जवाहर के पिता किशनु और दो औरतें थीं। जवाहर जल्दी जल्दी अपने बेटे को डॉक्टर के पास ले गया । " हमारे बच्चे को बचा लो डॉक्टर इसको पता नहीं क्या हो गया है चार दिन से इसकी बुखार कम नहीं हो रही है ना कुछ खा - पी रहा है ना ही ठीक से सो पा रहा है। " जवाहर ने घबराते हुए डॉक्टर से कहा ।
डॉक्टर बच्चे को अंदर लेकर जाते है और थोड़ी देर बाद वापस आते है । " बच्चे को हैजा और मलेरिया दोनों है , हालत बहुत खराब है आपने बहुत देर कर दी है उसे अस्पताल लाने में । " डॉक्टर ने जवाहर से अफसोस जताते हुए कहा ।
" नहीं ,नहीं डॉक्टर साहब ,ऐसा नहीं कहिए.....हमारा इकलौता पोता है वो हमारे जीने का सहारा है ,,आप....
आप उसे कैसे भी ठीक कर दीजिए । " किशनु ने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए कहा ।
" मै तो बस कोशिश कर सकता हूं बाकि तो ऊपरवाले के हाथ में है लेकिन बच्चे की हालत खराब है मै कोई झूठी सांत्वना नहीं दे सकता । " डॉक्टर इतना कहकर चला गया । जवाहर की पत्नी और मां दोनों फुट - फुट के रोने लगी । किशनु माथा पकड़कर वहीं नीचे बैठ गया ।सविता काकी लपक कर उनके पास पहुंची । जवाहर की पत्नी सुशीला साड़ी की पल्लू को मुंह से लगाकर रोए जा रही थी । सविता काकी को देखते ही जवाहर और किशनु दोनों ही गुस्से से बौखला गए ।
" आप यहां से जा सकती है हमें आपकी कोई जरूरत नहीं है " किशनु ने दांत पिसते हुए कहा ।
" मैं तो बस वो ... वो बच्चे को देखने ........" सविता काकी थोड़ा सहमते हुए कहा ।
" ये देखने आई हो कि वो जिंदा है या नहीं .....अभी तुम्हारा मन नहीं भरा हमें दुख देने से । " जवाहर की मां फूलमती ने रोते हुए चिल्लाकर कर कहा ।
सविता काकी आंखो में आंसू भर कर उन्हें देखने लगी ।वो उनके दुख को समझ रही थी वो किशनु और फूलमती के हर दर्द और आंसूओं से परिचित थी लेकिन जो कुछ भी 15 साल पहले हुआ था उसमे किसी की विशेष गलती नहीं थी फिर भी इसके लिए हर कोई दोषी था। सविता काकी चुपचाप अंदर चली गई ।
धीरे धीरे गांव के और भी बच्चे अस्पताल में भर्ती होने लगे थे लेकिन गांव के अस्पताल में सुविधाएं और अच्छे डॉक्टर्स की कमी के कारण बच्चों के हालत में सुधार के बजाय और खराब होती जा रही थी । गांव के डॉक्टर्स ने मिलकर मुंबई के फेमस डॉक्टर बिंदु को गांव में बुलाने के लिए गांव के मुखिया शिवनाथ और जमींदार ब्रम्ह देव से बात करने के लिए बुलावा भेजा ।सविता काकी ने जब डॉक्टर बिंदु को बुलाने के बारे में सुना तो उनका शरीर कांपने लगा ,उनके आंखो से आंसू बहने लगे ,उनके कांपते होंठो से एक बार डॉक्टर बिंदु का नाम निकला फिर उन्होंने अपनी आंखे बन्द कर ली।उनके सामने पिछली बातें किसी फिल्म की तरह चलने लगी ।
" सविता काकी ......" किसी ने आवाज दी तो उन्होंने जल्दी से अपनी आंखो को पोछ लिया और मुस्कुराते हुए आवाज की तरफ मुड़ी तो सामने नर्स खड़ी थी । सविता काकी पास पड़े कम्बल को जल्दी से उठाया और वार्ड की तरफ बढ़ गई । मरीजों की संख्या बढ़ने से अब अस्पताल में जगह नहीं बची थी लोगो को अस्पताल के बाहर चटाई बिछाकर उन्हें लिटाया जाने लगा । अस्पताल में भीड़ बढ़ जाने से वहां गंदगी भी बढ़ने लगी ।अच्छे डॉक्टर्स की कमी के कारण मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी । जवाहर के बेटे की हालत भी जस की तस बनी थी । धरमपुर गांव के बगल के गांव भानपुर के बड़े जमींदार सचदेव सेठ के बड़े बेटे वीर राज सेठ की हालत भी मलेरिया ने पस्त कर रखा था । सचदेव का प्रभाव अपने गांव के साथ साथ अगल - बगल के गांव में भी बहुत चलता था । जमींदार परिवार धन दौलत से सम्पन्न तो था ही साथ ही इलाके भर के सभी गुंडे -मावलियो से घनिष्ठ मित्रता थी ।सचदेव के खिलाफ जाने वाले की हालत क्या होता है ये सभी गांव वालों को पता चल चुका था । सचदेव ने बहुत झाड़ - फूंक कराने के बाद हालत में सुधार न देखकर अस्पताल लाने को तैयार हुए । जमींदार के बेटे होने के कारण डॉक्टर्स अन्य मरीजों को छोड़कर वीरराज के आस - पास लग गए । अन्य मरीजों के पास केवल कुछ नर्सें और सविता काकी रह गई थी । सचदेव अस्पताल में अपने बेटे के पास बैठा हुआ था उसके लिए अस्पताल में विशेष व्यवस्था की गई थी । मरीजों को अस्पताल के बाहर रखा गया था लेकिन सचदेव के लिए अस्पताल की एक तिहाई हिस्सा खाली करा दी गई थी ।बाहर किशनु और जवाहर खड़े थे तभी अंदर से सचदेव अपने आदमियों के साथ बाहर आया और वहां उन दोनों को देखकर गुस्से से उसकी आंखे लाल होने लगी उधर जब किशनु और जवाहर सचदेव को देखकर कांप उठे उनकी नज़रे नीचे झुक गई उनकी हालत उन कैदियों के सामान थी जो निर्दोष थे लेकिन फिर भी फांसी की सजा सुनाई गई थी । सचदेव ने अपने आदमियों को एक नजर देखा और दोनों को क्रूरता से घूरते हुए आगे बढ़ गया
पीछे से सचदेव के आदमियों ने किशनु और जवाहर को पकड़ कर एक किनारे पर ले गए और तबातोड़ उन पर लातो - घुसो की बारिश कर दी । जवाहर और किशनु जोर जोर से चिल्ला पड़े थे अगल बगल कुछ लोग इकट्ठे हो गए लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वो ये सब रोक सके। इतने से भी उनका मन नहीं भरा तो अस्पताल से उसके बच्चे को उठाने चले गए किशनु और जवाहर ने रोकने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ ।अस्पताल में सचदेव के आदमी जवाहर के बच्चे को ढूंढ रहे थे । सुशीला उनके पैर पकड़ कर रोने लगी ।
" मेरे बच्चे ने क्या बिगाड़ा है वो .....वो तो दस साल का बच्चा है , भगवान के लिए मेरे बच्चे को छोड़ दो " सुशीला रोते हुए उनसे मिन्नतें करने लगी लेकिन उन पर कोई असर ना होना था ,ना हुआ । किशनु मार खाने के बाद बेहोश हो चुका था जवाहर की हालत भी खराब हो गई थी उसके सिर , मुंह और नाक से खून बह रहा था हाथ की एक दो हड्डियां भी शायद टूट गई थी । फूलमती अपने पति और बेटे की दुर्गति देखकर चीखने लगी लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी कि वो सचदेव के खिलाफ जाए । सचदेव के गुंडों ने पूरा अस्पताल छान मारा लेकिन जवाहर का बच्चा उन्हें नहीं मिला तो गुस्से में आकर वो फिर से जवाहर को घसीटते हुए ले जाने लगे । फूलमती और सुशीला उसे छुड़ाने की कोशिश करने लगी ,तभी एक आदमी आकर उन गुंडों से कुछ कहता है जिससे सभी जवाहर को छोड़कर तेजी से वहां से निकल जाते है ।
सचदेव के आदमियों के जाने के बाद सुशीला और फूलमती भागती हुई जवाहर और किशनु के पास पहुंची सुशीला फुट - फुट कर रोने लगी , जवाहर उठने की कोशिश कर रहा था लेकिन चोट लगने के कारण उठ ना सका । कुछ लोगों ने मिलकर उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दिया । जवाहर उठकर अस्पताल में अपने बेटे को ढूंढने लगा, सुशीला ने उसे उठने से मना किया लेकिन जवाहर नहीं माना । सुशीला और जवाहर दोनों अपने बेटे को ढूंढने लगे ,घबराहट के मारे उनकी जान निकल रही थी तभी अस्पताल के पिछले दरवाजे से सविता काकी उस बच्चे को गोद में उठाए धीरे - धीरे अन्दर आई ।
"मेरे बच्चे को कहां ले गई थी ?? हिम्मत कैसे हुई मेरे बेटे को हाथ लगाने की ?? चाहती क्या हो तुम ?? " जवाहर अपने बेटे को सविता काकी के गोद से छीनते हुए कहा ।सविता काकी कुछ बोली नहीं वहां से हट कर एक किनारे आ खड़ी हुई ।
" मेरे बेटे को उन गुंडों से बचाने के लिए आपका धन्यवाद । " पीछे से आवाज आई तो सविता काकी मुड़ कर देखी सामने सुशीला खड़ी थी । सविता काकी बस हल्का सा मुस्कुरा दी। फूलमती की आवाज सुनकर सुशीला जल्दी से वहां से हट गई ।
अन्य रोगियों के साथ साथ वीर राज की भी हालत बिगड़ती जा रही थी । डॉक्टर्स के बुलाने पर मुखिया शिवनाथ और जमींदार ब्रम्हदेव डॉक्टर्स से मिलने गए वहां डॉक्टर्स की बात सुनकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई ।
" ये नहीं हो सकता डॉक्टर साहब आप कोई और उपाय सोचिए । " शिवनाथ निश्चय स्वर में कहा ।
" लेकिन और कोई उपाय नहीं है ,आप समझने की कोशिश कीजिए ।" एक डॉक्टर ने उन्हें समझने की कोशिश की ।
" समझने की कोशिश आप कीजिए डॉक्टर साहब ,वो औरत यहां कभी नहीं आ सकती । " ब्रमहदेव ने तेज आवाज में कहा तो सभी डॉक्टर्स एक दूसरे का मुंह देखने लगे ।
कोई और रास्ता है क्या ??? शिवनाथ ने शांत स्वर में पूछा।
" बाढ़ के वजह से सभी रास्ते बन्द है सरकारी डॉक्टर्स बिना सरकार के आदेश के नहीं आ सकते है और हम लोगों के पास ज्यादा समय नहीं है , निजी अस्पताल वाले बहुत ज्यादा रकम की इच्छा दिखा रहे है ,ऐसे में केवल डॉ बिंदु ही एक उम्मीद के रूप में नजर आ रही है जो निःशुल्क और निःस्वार्थ भाव से समाज सेवा से जुड़ी हुई है और वो गरीब ..........।"
" बस हम समझ गए ,ज्यादा प्रसंशा करने की कोई जरूरत नहीं है ।" ब्रम्हदेव ने डॉक्टर की बात काटते हुए कहा ।
ब्रम्हदेव ने शिवनाथ की ओर देखा जो किसी गहरी सोच में डूबे हुए थे ।
" आप जो सोच रहे है वो कभी नहीं हो सकता ,उसके यहां आने से एक नया तबाही आ जाएगी । " ब्रम्हदेव ने सख्त लहजे में शिवनाथ से कहा ।
" अन्य कोई रास्ता भी तो नहीं दिख रहा है ,आखिरी इतने लोगों की जिंदगी का सवाल है ।" शिवनाथ ने ब्रम्हदेव को देखते हुए कहा ।
" लेकिन ....." ब्रम्हदेव की बात गले में ही अटक गई।
" हमे पंचायत बुलाकर पूछ लेनी चाहिए कि उनकी राय क्या है ?" ।
" इसमें पूछना क्या है मुखिया जी ,आप जानते है सबकी राय क्या होगी ?"
" लेकिन मुश्किल घड़ी में लोग अपनी जान बचाने की कोशिश करते है दुश्मनी की नहीं ।"
" ठीक है , अगर आपको लगता है कि ये उचित होगा तो ये करके देख लेते है ,लेकिन इसका जो भी परिणाम होगा उसके लिए आप जिम्मेदार होंगे ।" इतना कहकर ब्रम्हदेव तेजी से वहां से निकल गए ।
किशनु को होश आ गया था लेकिन एक तो बुढ़ापा और ऊपर से लगी चोट की वजह से वो ठीक से चल नहीं पा रहा था ।उसके कमर और पैरों में भयंकर पीड़ा हो रही थी ।जवाहर अपने सभी कष्ट - पीड़ा को अपने हृदय में छुपाये बैठा । वो कहना चाहता था लेकिन कह नहीं सकता था ,वो रोना चाहता था लेकिन रो नही सकता था क्योंकि उसे स्वयं से ज्यादा परिवार की चिंता थी ।जवाहर प्रतिदिन की बदनामी , भय , लोगों के ताने , सचदेव का अत्याचार सहन करते हुए उब चुका था वो इन सब बातों को अपने जीवन से निकाल फेंकना चाहता था जैसे कोई दूध में पड़ी मक्खी को अपने हाथो से निकाल फेंकता है ,जैसे कोई अपने शरीर पर चलते किसी चींटी को झटकर फेंक देता है वैसे ही जवाहर अपने परिवार पर 15 सालों से आई समस्या को कहीं दूर फेंक देना चाहता था लेकिन चींटी या मक्खी जैसे आसान कार्य नहीं था ये चारों तरफ से गुस्से से विवेक खोई मधुमक्खियों से घिरे उस व्यक्ति की तरह था जो बस किसी तरह इनसे जान बचाने के लिए इधर - उधर भागता रहता है।जवाहर सभी के अत्याचार को चुपचाप सह लेता था क्योंकि उस अपने मां- बाप, पत्नी और बच्चे की चिंता सताती रहती थी ।वो किसी से कोई शिकायत नहीं करता क्या पता उसकी इस गुस्ताखी की सजा उसके परिवार को भुगतना पड़े ।गरीब, मजदूर परिवार कर भी क्या सकता है ,उसके एक आवाज को दबाने के लिए हजारों आवाजें उठ जाएगी । किशनु का पूरा परिवार इसी डर में जीता आ रहा था कब किसका दिमाग फिर जाए और वो इन्हें उस गुनाह की फिर सजा दे जाए जो इन्होंने किए ही नहीं ।
अगले दिन पंचायत बैठाई गई जिसमें सभी धरमपुर वालों को बुलाया गया था । लेकिन पंचायत में कुछ लोग ही पहुंचे थे कुछ बीमार थे और कुछ अस्पताल में अपने परिवाजनों के पास देखभाल के लिए रुके हुए थे ।इस पंचायत में किशनु और जवाहर को भी बुलाया गया था , इसमें भानपुर के जमींदार सचदेव और कुछ सम्मानित बड़े - बुजुर्गों को बुलाया गया था ।पंचायत बैठने वाली थी इधर शिवनाथ की हृदय गति बढ़ गई थी इतनी घबराहट तो उन्हें वोट गणना के समय नहीं हुई थी जब वो इस गांव के मुखिया बने थे ।अपने कंधे पर डाले हुए सफेद गमछे से व बार बार मुखमंडल पर आए घबराहट के बूंदों की पोछ रहे थे इससे बूंदे तो खत्म हो जा रही थी लेकिन घबराहट और चिंता अपने रफ्तार पर अडिग रहे थे ।
ब्रम्हदेव की अवस्था भी कुछ ऐसी ही थी सदा से पूजा के समय आरती में एक रुपए डालते हुए वो धनदेवी से निवेदन करते कि वो उन्हें एक रुपए के बदले में एक लाख सूद समेत लौटा दे , अपनी जमीन के पास पास के जमीन का मेड़ काट - काट कर अपनी वृद्धि करने वाले ब्रम्हदेव, आज उन्हें अपनी धन - दौलत ,जमीन किसी की चिंता नहीं थी ।आज वो शक्तिदेवी की आराधना लगे थे कि आज जो कुछ भी होगा उसके लिए उन्हें शक्ति प्रदान करें इसके लिए वो अपना दिल करके आगे से आरती में दो रुपए डालने का वचन भी भगवान को दे डाला ।
पंचायत लग रही थी किसी को पता नहीं था कि आज किस बात की पंचायत करनी है ऐसी कौन सी बात है जिसके लिए पूरे गांव को बुलावा भेजा गया था ,दूसरे गांव से भी लोगों को बुला रखा है कुछ लोगों की हालत तो पहले ही खराब हो गया था जब उन्हें पता चला कि इस पंचायत में सचदेव को भी बुलाया गया है सभी लोग आपस में खुसुर - फुसुर के रहे थे ,कुछ लोग अपने बुझक्कड़ी का प्रदर्शन तुक्के मार- मार कर किए जा रहे थे। किशनु कही आने - जाने की अवस्था में नहीं था इसलिए वो पंचायत में नहीं गया , उसकी और अपने बेटे की देखभाल के लिए जवाहर भी पंचायत नहीं गया , वैसे भी उसका मन पंचायतों अथवा लोगों के समूह में जाने को नहीं करता था ,वो लोगों से दूरियां बना के ही रखना चाहता था । पंचायत भी बैठ गई , सामने ऊंचे स्थान पर बिछे मोटी गद्दियां पर पंच बैठे हुए थे सामने त्रिपाल पर गांव वाले बैठे हुए थे । पंचों ने शिवनाथ और ब्रम्हदेव को बुलाकर पंचायत बिठाने का कारण पूछा। शिवनाथ की आवाज उसके हलक में ही अटक गई ,मानो किसी ने उसकी आवाज ही छीन ली हो , उसकी धड़कने बढ़ गई थी शरीर में कम्पन महसूस हो रही थी , पसीने से पूरा चेहरा भीग गया था ।
" ब्रम्हदेव अब आप बताइए भी की पंचायत क्यों बुलाई है अपनी ?" एक पंच ने ब्रम्हदेव से प्रश्न किया ।
ब्रम्हदेव अपना सुनते ही चौंक उठा , उसने पंचों की तरफ एक नजर देखा ।
ब्रम्हदेव एक अस्पताल में पड़ा हुआ था उसके हाथ - पैर टूटे हुए था ,सिर से खून बह रहा था , उसकी बीबी पुरानी मट- मैला साड़ी पहने उसके पास खड़ी थी कई दिनों से भूखा होने के कारण उसकी हालत बदतर हो गई थी । उसकी सारी सम्पत्ति गांव वाले हड़प लिए थे उसका परिवार फटे पुराने कपड़े पहने हुए सड़क पर आते - जाते लोगो से भीख मांग रहे थे ।
" ब्रम्हदेव .... ब्रम्हदेव....आप सुन रहे है " किसी की आवाज गूंजी तो वो अचानक चौंक पड़ा ,उसने देखा कि वो पूरे गांव के सामने सम्मान से खड़ा है अभी जो देखा वो बस एक कल्पना था , बुरा ख्वाब था लेकिन यह सपना कहीं उसकी जीवन कि सच्चाई न बन जाए । आगे क्या होगा ये किसी को नहीं पता था ।शिवनाथ ने बड़ी कठिनाई से अपने कंठ से आवाज निकाला मानो आज वह पहली बार बोलना सीख रहा हो ।
" बा....बात ये है कि ..... कि ..वो....वो बात ......" शिवनाथ का हकलाना देख सभी ग्रामवासी मुंह दबा कर हंस पड़े ।
" क्या बात है मुखिया जी आप तो ऐसे हकला रहे है जैसे आपके गले पर किसी ने तलवार रखा हो " एक पंच ने थोड़ा मुस्काते हुए कहा ।"
शिवनाथ अपनी ही हरकत से शर्मशार हो गया ,उसने लाचारी से ब्रम्हदेव की ओर देखा जो ऊपर से खुद को शांत दिखाने की असफल मेहनत में लगे थे ।
" ब्रम्हदेव ये क्या चल रहा है पंचायत में ऐसी मजाक शोभा नहीं देती ,मुखिया जी और आपने मिलकर ये पंचायत बुलाई थी ,लेकिन आप दोनों ही कारण बताने में असमर्थ लग रहे है आप दोनों जैसे सम्मानित और जिम्मेदार इंसान से ऐसी उम्मीद नहीं थी हमें ,आप दोनों ने पूरे पंचायत व्यवस्था का अपमान किया है ।"एक पंच ने फटकारते हुए कहा । ब्रम्हदेव पूरे गांव के सामने अपना अपमान देख क्रोध से उत्तेजित हो उठा वो गुस्से में बोलने गया लेकिन उसके सामने 15 साल पहले की घटना याद आते ही सारा क्रोध गौरैया के सामान फुर्र हो गई । शिवनाथ ने जवाहर और किशनु को भी जोर - जबरदस्ती से बुलवा लिया था ।सारे ग्रामवासी आपस में खुसुर - फुसुर करने लगे थे ।बात बिगड़ते देख शिवनाथ ने अपनी बात कहना शुरू किया ।
" डॉ ने कहा है कि गांव में महामारी के कारण हालत बहुत खराब है गांव के डॉ उपचार करने में असमर्थ है सरकारी सहायता मिलने वाली नहीं है ,....इसलिए डॉक्टर्स का कहना है कि मुंबई में एक डॉक्टर है जो .....जो इस तरह मजबूरी में फंसे लोगों की निशुल्क उपचार करती है ,तो डॉक्टर्स का कहना है कि ..... कि हमें उन्हें अपने गांव में बुला लेना चाहिए ......"
" तो इसमें इतना घबराने वाली क्या बात है मुखिया जी , क्या समस्या है बुला लीजिए उन्हें ।" पंचों ने सहमति से कहा ।
कहानी जारी है -🙏🙏