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बीती विभावरी , जाग री

8 सितम्बर 2021

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बीती विभावरी जाग री!

अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी!

खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर ला‌ई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी

अधरों में राग अमंद पिए
अलकों में मलयज बंद किए
तू अब तक सो‌ई है आली
आँखों में भरे विहाग री!

- जयशंकर  प्रसाद  



 

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