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पुष्प की अभिलाषा

8 सितम्बर 2021

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चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,


चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,

मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!

- माखन लाल चतुर्वेदी  

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रचनाएँ
कविताएं जो मन में बस गयी
5.0
कुछ काव्य जो मेरे मन में बस गए | उन्हें संगृहीत करने का एक छोटा सा प्रयास ...
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घर की याद

2 सितम्बर 2021
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<p>“घर की याद” कविता के कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी हैं। कवि ने सन 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन” में बढ़

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अग्निपथ

6 सितम्बर 2021
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<p>वृक्ष हों भले खड़े,<br> <br> हों घने हों बड़े,<br> <br> एक पत्र छाँह भी,<br> <br> माँग मत, माँग म

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बालिका से वधु

6 सितम्बर 2021
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<p>माथे में सेंदूर पर छोटी<br> दो बिंदी चमचम-सी,<br> पपनी पर आँसू की बूँदें<br> मोती-सी, शबनम-सी।</p

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यह धरती कितना देती है

7 सितम्बर 2021
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<p>मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे, <br> सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे, <br> रुपयों की कलद

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पुष्प की अभिलाषा

8 सितम्बर 2021
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<p>चाह नहीं, मैं सुरबाला के <br> गहनों में गूँथा जाऊँ,<br> चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध<br> प्यारी

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नर हो , ना निराश करो मन को

8 सितम्बर 2021
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<p>नर हो, न निराश करो मन को<br> कुछ काम करो, कुछ काम करो<br> जग में रह कर कुछ नाम करो</p> <p><br> यह

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हिमाद्रि तुंग श्रृंग

8 सितम्बर 2021
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<p>हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती<br> स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती<br> 'अमर

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बीती विभावरी , जाग री

8 सितम्बर 2021
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<p>बीती विभावरी जाग री!<br> <br> अम्बर पनघट में डुबो रही<br> तारा-घट ऊषा नागरी!<br> <br> खग-कुल कुल-

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हम पंछी उन्मुक्त गगन के

8 सितम्बर 2021
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<p>हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के<br> <br> पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,<br> <br> कनक-तीलियों से टकराकर<br> <br>

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