shabd-logo

नर हो , ना निराश करो मन को

8 सितम्बर 2021

32 बार देखा गया 32

नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो


यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को।


संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।


जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को।


निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को।


प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को।


किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जन हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को।


करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो

बनता बस उद्‌यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो।
 

Poonam kaparwan

Poonam kaparwan

मैथिलीशरण गुप्त की रचना को शत शत नमन।

8 सितम्बर 2021

Rupendra Sahu "रूप"

Rupendra Sahu "रूप"

All time favorite 😊👌

8 सितम्बर 2021

प्रशाली जैन

प्रशाली जैन

8 सितम्बर 2021

:)

Shailesh singh

Shailesh singh

हिंदी साहित्य के सूर्य मैथिली शरण गुप्त जी को शत शत नमन🙏

8 सितम्बर 2021

प्रशाली जैन

प्रशाली जैन

8 सितम्बर 2021

naman

9
रचनाएँ
कविताएं जो मन में बस गयी
5.0
कुछ काव्य जो मेरे मन में बस गए | उन्हें संगृहीत करने का एक छोटा सा प्रयास ...
1

घर की याद

2 सितम्बर 2021
6
6
0

<p>“घर की याद” कविता के कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी हैं। कवि ने सन 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन” में बढ़

2

अग्निपथ

6 सितम्बर 2021
1
7
0

<p>वृक्ष हों भले खड़े,<br> <br> हों घने हों बड़े,<br> <br> एक पत्र छाँह भी,<br> <br> माँग मत, माँग म

3

बालिका से वधु

6 सितम्बर 2021
1
7
0

<p>माथे में सेंदूर पर छोटी<br> दो बिंदी चमचम-सी,<br> पपनी पर आँसू की बूँदें<br> मोती-सी, शबनम-सी।</p

4

यह धरती कितना देती है

7 सितम्बर 2021
2
13
0

<p>मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे, <br> सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे, <br> रुपयों की कलद

5

पुष्प की अभिलाषा

8 सितम्बर 2021
0
10
0

<p>चाह नहीं, मैं सुरबाला के <br> गहनों में गूँथा जाऊँ,<br> चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध<br> प्यारी

6

नर हो , ना निराश करो मन को

8 सितम्बर 2021
6
10
5

<p>नर हो, न निराश करो मन को<br> कुछ काम करो, कुछ काम करो<br> जग में रह कर कुछ नाम करो</p> <p><br> यह

7

हिमाद्रि तुंग श्रृंग

8 सितम्बर 2021
0
7
0

<p>हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती<br> स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती<br> 'अमर

8

बीती विभावरी , जाग री

8 सितम्बर 2021
4
8
0

<p>बीती विभावरी जाग री!<br> <br> अम्बर पनघट में डुबो रही<br> तारा-घट ऊषा नागरी!<br> <br> खग-कुल कुल-

9

हम पंछी उन्मुक्त गगन के

8 सितम्बर 2021
1
7
0

<p>हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के<br> <br> पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,<br> <br> कनक-तीलियों से टकराकर<br> <br>

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए