प्रकृति कर रही नर्तन, धार नववधू यौवन
शीत का है गमन ,ऋतुराज का आगमन
धूप हुयी गुनगुनी सजीली व चमकीली
जीर्ण वसन छोड़ नवपात सजी डाली
रुत मस्तानी, स्वच्छ चांदनी है गगन में
देखो नव फसलें, किलक रहीं भूतल में
वीणा सा मुखरित, धरा का कण-कण
आज कृषक विहंग, हो रहा क्षण-क्षण
पीत रंग लहंगा, नीलाभ अलसी चोली
चली रूपसी ऋतुकंत से मिलने नवेली
मलय सुगन्ध सुरभित पवन बह रही है
प्रकृतिवधू भर अंक में भेंट कर रही है
आम्रबौर लगा मौर ऋतुपति सज रहे हैं
स्वागतार्थ अशोक पल्लव बज रहे हैं
नजरे उतारें सुमन अपने कुमकुम पराग से
शुक सारिका अलि मस्त गा रहे हैं राग से
देख मयूर नर्तन मोदमग्न दोनों नवयुगल
महुआ अश्रुपूरित विकल रोदन कर रहे हैं
कुंजनकछारन, केलिन, कियारिन, कोपल
कली-कली में केशर रंग अंजुरी भर रहे हैं
प्रकृति कर रही नर्तन धार नववधू यौवन
शीत का है गमन ऋतुराज का आगमन।