फाग राग अलबेला कहुं न पड़े सुनाई
सखी बसन्त मदन ऋतु है कहां आई??
न दिखे खेत पीले सरसों न नीली अलसी ।
कहां सखी कोकिल कूके आंबौर हुलसी ।
सूरजमुखी के गेरुए संत गेंदा की तरुणाई ।
मधुरस महुआ को छू पवन करे अगुआई ।
फाग राग अलबेला कहुं न पड़े सुनाई
सखी बसन्त मदन ऋतु कहां है आई??
अमलतास के पीत झुमके टेसू की पहुनाई ।
बजी न मधुकर चुम्बन की पुष्प शहनाई ।
कंह पराग रस झरे कंदब मादकता छाई ।
दुशाला ओढ़े सिट्टे, भुट्टे कहीं पड़े दिखाई??
फाग राग अलबेला कहुं न पड़े सुनाई
सखी बसन्त मदन ऋतु कहां है आई??
कंक्रीट के परखंडे देख मदन है सकुचाई ।
रूठे कपोत, शुक, सारिका ,खंजन, चकई ।
कहां सखी अब प्रेमभरे देवर, नंद भौजाई ।
कौन रहा घोट भोले की भांग चढ़ी ठंडाई ।
फाग राग अलबेला कहुं न पड़े सुनाई
सखी बसन्त मदन ऋतु कहां है आई??