बुद्ध ::: यथार्थता और मानवता
------------------------------------------------
आखिर #बुद्ध ने ऐसा क्या #कहा, मानवता को
ऐसा क्या दिया कि कोई भी सहज और सरल
व्यक्ति बिना किसी दबाव के बुद्धानुयाई बनने
को स्वत: सहमत होने लगता है। मेरी विनम्र
दृष्टि में इसके निम्न प्रमुख कारण हैं:—
1. धर्म मानव का स्वभाव है : बुद्ध कहते हैं, धर्म
सिद्धान्त नहीं, मानव स्वभाव है। मानव के
भीतर धर्म रात—दिन बह रहा है। ऐसे में
सिद्धान्तों से संचालित किसी भी धर्म को
धर्म कहलाने का अधिकार नहीं। उसे धर्म मानने
की जरूरत ही नहीं है। धर्म के नाम पर किसी
प्रकार की मान्यताओं को ओढने या ढोने की
जरूरत ही नहीं है। अपने आप में #मानव का #स्वभाव
ही धर्म है।
2. #मानो_मत_जानो : बुद्ध कहते हैं, अपनी सोच
को मानने के बजाय जानने की बनाओ। इस
प्रकार बुद्ध #वै ज्ञान िक बन जाते हैं।
अंधविश्वास और पोंगापंथी के स्थान पर बुद्ध
मानवता के बीच विज्ञान को स्थापित करते
हैं। बुद्ध ने #धर्म_को_विज्ञान से जोड़कर धर्म को
#अंधभक्ति से ऊपर उठा दिया। बुद्ध ने धर्म को
मानने या आस्था तक नहीं रखा, बल्कि धर्म
को भी विज्ञान की भांति सतत खोज का
विषय बना दिया। कहा जब तक जानों नहीं,
तब तक मानों नहीं। बुद्ध कहते हैं, ठीक से जान
लो और जब जान लोगे तो फिर मानने की जरूरत
नहीं होगी, क्योंकि जानने के बाद तो मान
ही लोगे। बुद्ध वैज्ञानिक की तरह से धर्म की
बात कहते हैं। इसीलिए #बुद्ध_नास्तिकों को भी
प्रिय हैं।
3. #परम्परा नहीं #मौलिकता : बुद्ध मौलिकता
पर जोर देते हैं, पुरानी लीक को पीटने या
परम्पराओं को अपनाने पर बुद्ध का तनिक भी
जोर नहीं है। इसीलिये बुद्ध किसी भी उपदेश
या तथ्य को केवल इस कारण से मानने को नहीं
कहते कि वह बात वेद या उपनिषद में लिखी है
या किसी ऋषी ने उसे मानने को कहा है। बुद्ध
यहां तक कहते हैं कि स्वयं उनके/बुद्ध के द्वारा
कही गयी बात या उपदेश को भी केवल
इसीलिये मत मान लेना कि उसे मैंने कहा है। बुद्ध
कहते हैं कि इस प्रकार से परम्परा को मान लेने
की प्रवृत्ति अन्धविश्वास, ढोंग और पाखण्ड
को जन्म देती है। बुद्ध का कहना है कि जब तक
खुद जान नहीं लो किसी बात को मानना
नहीं। यह कहकर बुद्ध अपने #उपदेशों और विचारों
का भी अन्धानुकरण करने से इनकार करते हैं।
विज्ञान भी यही कहता है।
4. #दृष्टा बनने पर जोर : बुद्ध दर्शन में नहीं
उलझाते, बल्कि उनका जोर खुद को, खुद का
दृष्टा बनने पर है। बुद्ध #दार्शनिकता में नहीं
उलझाते। बुद्ध कहते हैं कि जिनके अन्दर, अपने
अन्दर के प्रकाश को देखने की प्यास है, वही मेरे
पास आयें। उनका अभिप्राय उपदेश नहीं ध्यान
की ओर है, क्योंकि ध्यान से अन्तरमन की आंखें
खुलती हैं। जब व्यक्ति खुद का दृष्टा बनकर खुद
को, खुद की आंखों से देखने में सक्षम हो जाता
है तो वह सारे दर्शनों और #पूर्वाग्रहों से मुक्त
होकर सत्य को देखने में समर्थ हो जाता है।
इसलिये बुद्ध बाहर के प्रकाश पर जोर नहीं देते,
बल्कि अपने अन्दर के प्रकाश को देखने की बात
कहते हैं। अत: #खुद_को_जानना_उनकी_सर्वोच्च
प्राथमिकता है।
http://buddhmarg.wordpress.com
Plz लिंक से कुछ भी कॉपी पेस्ट करके शेयर करे