चलो तुम न लेटो,
चलो तुम न लेटो,
आओ हम बैठ एक दूसरे को ताके,
बस अनन्त में बसी आंखों में झांके,
चलो तुम न लेटो,
हम तुम्हारे हाथों की बाह में चिड़िया वाला खेल खेले,
तुम्हारी कलाई को पकड़े ओर खुद से मिला के चले,
चलो तुम न लेटो
चलो तुम न लेटो,
आओ मेरे सामने बैठो,
अपने बालों को जूड़े से खोलो,
हम सहलाये उन्हें,
मखमली रेशो में अपनी उंगलिया फिराए,
कभी समेटे, कभी बिखेरे,
कभी जूड़ा बनाये,
चलो तुम न लेटो
चलो तुम न लेटो,
आओ मेरी गोद मे सर रखो,
और सुनो मेरी बेतरतीब शब्दो से बनी कविता एं,
सहलाओ मेरे सीने को,
महसूस करो मेरे उलझे, बिखरे शब्दो को
चलो तुम न लेटो।
चलो तुम न लेटो,
बस रख दो सिर मेरी जंघा पर,
सहला ले माथा तुम्हारा,
चुम ले गुलाबी गाल तुम्हारे,
छू ले काले रेशमी बाल तुम्हारे,
चख ले मदमस्त होठ तुम्हारे,
चलो तुम न लेटो।
चलो तुम न लेटो,
दिखाओ अपनी पाजेब हमे,
गिने उसके घुंगरू हम,
अपने हाथों से नचाये बजाए छन छन,
घुमाये, झुलाए खन खन,
हल्के से चुम ले,
शरारत करके तलवे में गुदगुदी कर दे,
फिर तुम हंसो खूब शर्माओ लजाओ,
चलो तुम न लेटो।
चलो तुम न लेटो,
आओ फिरा दे उंगली तूम्हारे घुटनो पर,
फिर पिंडली से लचकाते हुए तलवे तक ले जाये,
फिर तुम्हारी गुलाबी शर्मीली हंसी देख के,
और सुरसुरी बढाये,
ओर तुम्हे अहसासों के सागर में गोते लगवाए,
चलो तुम न लेटो।
चलो तुम न लेटो,
बस आईने ने देख के,
झुमके उतारो अपने,
फिर हम पीछे से परेशान कर तुम्हे,
तुम मना भी करो पर मना न करो,
तुम ठीक से बाल संवार,
हम बिगाड़ दे,
तुम अपने होठ दबा के गुस्साओ,पर गुस्साओ न,
तुम देख के जो शर्माती,
बस मेरे सीने में भर जाती,
चलो तुम न लेटो।
"अंकित_शुक्ला_प्रीत"