,,,, चकोरी कहती है चांद से,,
,, तू क्युं इतना तरसाए,,
,, सदियों की चाहत पर तुझे,,
,, इतनी भी तरस ना आए,,
,,परवाह नहीं है प्यार की,,
,, तो क्यों तू सामने आए,,
,, छुपा ही रहता बादल में ,,
,, क्यों चेहरा तू दिखलाएं,,
,, चांद कहता है चकोरी से,,
,, तु हमें ये ना समझाएं
,,न कभी तु हमें मिलसक्ता है,,
,,न कभी हम तुझे मिल पाएं,,
,, कुदरत की गति के बाहर,,
,, ना कदम हमारा कभी आए,,
,, पहले कभी हुआ है तो बता,,
,, तू क्यों हमें इतना उलजाए,,
,, चकोरी कहती हैं चांद से,,
,,तु मुझे ना ये बतलाए,,
,, तेरे अंबर से ही उतरकर,,
,,क्यु बादल बूंद बूंद बरसाएं,,
,, बिजली भी उन्हीं के संग,,
,, यहां आकर चमक बिखराएं,,
,, बस आज्ञाकारी तू ही है ,,
,,कि कुदरत का कहां मान जाए,,
,,, चंद्र कहता है चकोरी से,,
,, बार-बार कितना समझाएं,,
,, अरे बरसात बिजली तो,,
,, हैं सृष्टि के सर्जन में समाएं,
,, तेरी चाहत का आदर करें,,
,, तो समग्र चक्र बिखर जाए,,
,, जब विनाश हो सर्जन का,,
,, तो हमें मिलके भी क्या पाएं,,
,, शांत हो गई सुन के चकोरी,,
फिर ना चांद कभी बुलाए,,
,, हरदम प्यासी आंखों पर ,,
,, हंसते ही झुला झुलाएं,,
,, अभी तक उन्हें याद है,,
,, जो चांद ने शब्द सुनाएं,,
,, चांद वहीं चाहत देखकर,,
,, बहुत मंद मंद मुस्काए,,
हिंदम्
नटवर बारोट
मो,,9998884504