,, फूल ,,
,,कोरे कागज की किताब में,,
,, सिकुड़ कर कह रहा एक फूल हूं,,
,, आज भी वो यादों की उम्मीदों से,,
,, उभर के बाहर आना आसान नहीं,,
,, मर मिटने की मोहलत मिली पर,,
,, सांसो से चाहत का कोई सम्मान नहीं,,
,, फिर भी उन पल को,,,पलकों पर,,
,, शायद संभालके रख्खुं मै ही वो भूल हूं,,
,, पर वो मोहब्बत को ही मुरझा दे,,
,, क्या पता मेरी ही हमदम का उसूल हूं,,
,, कोरे कागज की किताब में,,
,, सिकुड़ कर कह रहा एक फूल हूं,,
,, नजाकत भरी नजरों से देखते थे,,
,, और अब उड़ती हुई नजर भी नहीं,,
,, वह चेहरे पर चेहरा बनाएं घूमे,,
,, क़ैद हूं,, उसे दर्द की असर भी नहीं,,
,, एक दुसरे की पहचान नहीं थी ,,
,, वो मुश्किलात में,,था और मुल हूं,,
,, तब सब साफ सुथरा रखते थे,,
,, और अब मेरी काया पर मैं धूल हूं,,
,, कोरे कागज की किताब में,,
,, सिकुड़ कर कह रहा एक फूल हूं,,
,, जाता था सर्जन हार के चरणों में,,
,, वहीं से वैलेंटाइन के दिन किया पसंद,,
,, खुशी समा नहीं रही थी सीने में,,
,, अब दर्द ने सीमा पार कर ली अनहद,,
,, बंद जुबा में पिंजरे में कैद कीए हुए,,
,, बहुत बेबस बेजुबान वही बुलबुल हूं,,
,, मैं तो ना जीता हूं ना मरता हूं पर,,
,, किस्मत ने हिसाब से अब कबूल हूं,,
,, कोरे कागज की किताब में,,
,, सिकुड़ कर कर रहा एक फूल हूं,,
,,हिंदम,,
,, नटवर बारोट,,
,,मो,,9998884504,,