,, ( उम्मीद चाहत को समझाती है)
,, तूं ऐसा क्यों करती हैं,,
,,जिसे हम पा नहीं सकते,,
,,जिसे महसूस नहीं कर सकते,,
,,जिसे हम देख नहीं सकते,,
,,और तू उसी पर जाकर मरती है,,
,, तू ऐसा क्यों करती है,,
,, तुझे कहा था रास्ता अलग है,,
,, उसी को छोड़कर सारा जग है,,
,, पर सब राहें को छोड़कर,,
,, वही गलियों से हीं तूं गुजरती है,,
,, तू ऐसा क्यों करती है,,
,, दोस्ती भी तेरी देख ली हमने,,
,, क्या दिया है वो तेरे सनमने,,
,, तूझे सब कुछ मालूम है कि,,
,, वहा सिर्फ नफरतें पलती है,,
,, फिर तूं ऐसा क्यों करतीं हैं,,
,, समझ यहीं हम दर्द है हमारे,,
,, जो कभी बन सकते हैं सहारे,,
,, उस से मिलने के बजाए उल्टा,,
,, तूं तों मुंह मरोड़ कर चलती है,,
,, तूं ऐसा क्यों करती हैं,,,,
,, लोग पुंछे काजल की क्या जरूरत,,
,,तेरे श्रुंगार की कभी बदली नहीं आदत,,
,, दुनिया कुछ भी कहे तूं और संवरती है,,
,, वक्त के साए में नित दिन निखरती है,,
,, तूं ऐसा क्यों करती हैं,,
,, ऐसा क्यों करती हैं,,
,,हिंदम,, नटवर बारोट,,
,,मो ,,9998884504,,