,,,, 231,, कोहरा ,,
,, कोहरे की ठंड में कइ बुंद ,,
,, गुल की पंखुड़ियों पर आ गई,,
,, सोच के गया में समीप ,,
,, तो चाह में ओर शरमा गई ,,
,, झुक के देखा मैंने जलवा,,
,, तो अंदर समा के फरमा गई ,,
,,ये फरमाती प्यारी पंखुड़ियां,,
,,क्युं किसी को ऐसे तरसा गई ?
,, हिंदम् ,,