,,,, ढलती शाम को चुनर बनाकर,,
,, तेज बिजली की चमक दिलाकर,,
,, बादल के बुंदोंं में थोड़ा सा भिगाकर,,
,, मेघ धनुष जैसेे रंगो में सजाकर,,
,,, वो चाहे तो उसको ओढ़ा दूं,,,पर,,
,,,, ,,,, वो कहें तो सही,,, ,,,,,,
,, चांदनी के किरणों से कंगन चुराकर,,
,, अंबर के तारों को हीरो में लाकर,,
,, आकाशगंगा की तरह चिपकाकर,,
,, दूर की दुनिया से लाऊं बचाकर,,
,,,, वो चाहे तो उसको पहना दूं ,,पर,,
,,,, ,,,, वो कहे तो सही ,,,, ,,,,,
,, हसीन वादियों केे हाथों से उठाकर,,
,, लता के वेलीयो में झूलों झूलाकर,,
,, गुलाब की पंखुड़ियो से खुशबू मिलाकर,,
,,चमेली की शाखाओं से सिंदूर चुरा कर,,
,,,, वो चाहे तो मांग भर दूं ,,, पर ,,,,
,,,,,, ,,,,, वो कहें तो सही,,,, ,,,,,,
,,हिंदम्,,
,, नटवर बारोट,,
,,मो,,9998884504,,