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चार मुक्तक ----- अलोक सिन्हा

12 जून 2017

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आंसुओं के घर शमा रात भर नहीं जलती ,

आंधियां हों तो कली डाल पर नहीं खिलती |

धन से हर चीज पाने की सोचने वालो ,

मन की शांति किसी दुकान पर नहीं मिलती |

फूल कली न हों तो चमन नहीं होता ,

सूर चन्द्र के बिना गगन नहीं होता |

वह सबसे अभागा गरीब है जग में ,

जिसके पास प्यार का धन नहीं होता |

भाग्य में अपने क्या बस काली रात है ,

नयन ने पाई आंसू की सौगात है |

बस ऊंचे भवनों तक आता उजियारा ,

गाँव में अपने उगता अजब प्रभात है |

मैंने उगता छिपता सूरज देखा है ,

क्षितिज नहीं कुछ भी बस भ्रम की रेखा है |

तुम शासन के प्रगति आंकड़े मत बांचो ,

भोग रहे जो बस वह असली लेखा है |

रेणु

रेणु

आदरणीय मंजरी जी -- आलोक जी के चारो मुक्तक पढ़कर मन को बड़ा आनंद प्राप्त हुआ -- भावों और जीवन कि सच्चाई से रुबरू करवाते ये मुक्तक लाजवाब हैं --- आलोक जी को हार्दिक शुभकामना ------

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