काग बोला है मुडेरी |
क्या तुम्हें हम याद आये ,
और तुमनें पग बढाये ,
पर अभी टूटी कहाँ होगी जंजीर तेरी |
ये हवा सीली हुई है ,
दूब कुछ गीली हुई है ,
जानता हूँ रच रही बरसात होगी याद मेरी |
शुभ शगुन हो या अमंगल ,
घट न पाता है नयन जल ,
ये अमिट है खिल न पायेगी अमावस में उजेरी |