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गीत -- आलोक सिन्हा

20 जून 2017

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रात ये तारों जड़ी है |

एक झरता है सितारा ,

एक झरता अश्रु खारा ,

कौन जाने है गरम , दोनों जलन किसकी बड़ी है |

बह रही शीतल पवन है ,

बावरी कैसी मगन है ,

एक मेरी प्रीत पागल मौन मन मारे पड़ी है |

जिन्दगी भर जो जले है ,

दीखते कितने भले हैं ,

बादलों की बूँद भी उन पर न भूले से पड़ी है |

भाग्य इनका और मेरा ,

एक सा उजला अँधेरा ,

एक जलने की घड़ी है , एक बझने की घड़ी है |

रेणु

रेणु

आदरणीय मंजरी जी --- आलोक जी कि ये हृदय स्पर्शी भावों से भरी रचना पढ़कर मन भावुक हो गया -------कौन जाने है गरम -- जलन किसकी बड़ी है ----- - एक जलने की घडी है एक बुझने की घडी है ----- बहुत खूब ---- आलोक जी को बहुत बधाई और शुभकामना ------

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