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गीत

20 जून 2019

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शादी के बाद ससुराल से एक बेटी की अपनी माँ को भावनात्मक पाती --

गीत

जिसकी रज ने गोद खिलाया ,

पैरों को चलना सिखलाया .

जहाँ प्यार ही प्यार भरा था - वह आंगन बहुत याद आता है |

सुबह सुबह आँखें खुलते ही ,

तेरा वह पावन सा चुम्बन |

फिर दोनों बांहों में भरकर.

हलका हलका सा आलिंगन |

बाबा की मीठी सी गोदी ,

दादी का हंस हंस बतियाना |

पापा का कांधों पर लेकर .

बाहर फूलों से बहलाना |

कैसे सब घर परिधि बनाकर ,

मेरे लिए खेल रचता था |

और जरा सा गिर जाने पर ,

चींटी के सौ शव गिनता था |

तुम पल्लू से गात पोंछ कर ,

कैसे मुझको चिपटाती थी |

मेरी पीड़ा दुलराने को ,

भू को कितना डटियाती थी |

माँ वह बेलों , बूटे वाला ,

पावन मंगल गोटे वाला ,

जिसने मेरे आंसू पोंछे - वह दामन बहुत याद आता है |

कैसे मधुरिम थे वो सब दिन ,

कितनी प्यारी सी सखियाँ थीं |

कैसे चिता रहित विचरते ,

हर पग पर बिखरी खुशियाँ थीं |

कभी खेलते आँख मिचोनी ,

गुड़ियों की हम शादी करते |

झूठ मूठ के व्यंजन रच कर ,

सबसे आ खाने को कहते |

रक्षाबन्धन के दिन सबका ,

कितना चरम प्यार मिलता था |

और जनम दिन की संध्या पर ,

कैसा घर उत्सव मनता था |

तीजें आतीं , महदी रचती ,

पेड़ों पर नव झूले पड़ते |

सखियाँ मेघ मल्हारें गाती ,

हम पेंगों से नभ को छूते |

माँ वह मधुर बयारों वाला ,

शीतल मंद फुहारों वाला ,

जिसमें जीवन के सब रंग थे - वो सावन बहुत याद आता है |

मुझे पता था तितली जुगनू ,

तुम्हें बहुत करुण लगते हैं |

उन्हें पकड़ना , बंदी रखना ,

तुम्हें बहुत आहत करते हैं |

फिर भी छूने के लालच वश ,

मैं जब इनके लिए मचलती |

तो अगाध ममता के कारण ,

कभी न क्रोध जरा सा करतीं |

कितना दिल था बड़ा तुम्हारा ,

कैसे सबका मन रखती थीं |

मैं थोड़ा भी सुस्त दिखूं तो ,

सारी रात साथ जगती थीं |

बीस बरस जो हर पल पाया ,

कैसे अब वह प्यार भुलाऊँ |

किसकी गोदी में सर रख कर ,

अपनी हर पीड़ा दुलराऊँ |

माँ वह तेरा भोला भाला ,

सबकी चिंता करने वाला ,

जिसमें ममता ही ममता थी , वो आनन बहुत याद आता है |

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