चारु चन्द्र की चंचल किरणें...
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मन चंचल, तन चंचल
मन-मयूर जब नाचे-गाए जग लागे हिय नया-नया, धरती-अम्बर झूमें ऐसे स्वर्ग हो उतरा आ के धरा I