“चिराग जलना चाहिए ”
सिल गये हों होठ तो भी गुनगुनाना चाहिए
अब पिटारी से कोई खुशबू निकलनी चाहिए |
बदनुमा इस शहर की अब शाम ढलनी चाहिए
खट्टे मीठे स्वाद को भी बदलना चाहिए |
रहनुमा सारे किनारों को मचलना चाहिए
ठूठी सियासत बहुत बदरी अब सम्हलना चाहिए |
विद्रोह की ज्वाला न भड़के जतन करना चाहिए
जनता सारी समझ रही खुद समझना चाहिए |
बुझ चुके वस्ती के चिराग पुन: जलने चाहिए
दीपक जलते महलो में दिल में भी जलना चाहिए|
गाँव के सारे शहर को फिरअन्न मिलना चाहिए
अमन हो परदेश सारा रहमों करम होना चाहिए ।