धीरे धीरे दिन बीतने लगे, चोको कब दिनचर्या का हिस्सा बन गयी पता ही नहीं चला. सुबह सुबह अपना पट्टा दांतो के बीच में दबा के लाती की चलो बाहर घूमने जाने का समय हो गया है. जल्दी से उठ गए तो ठीक , नहीं उठते तो कम्बल खिंच देती , हाथ पाँव चेहरा जो पहुँच में आ जाए वो चाटने लगती . उसके ऐसे करने से जैसे नियत समय पर उठने की आदत सी पड़ गयी थी. घूम कर आते ही सुबह का खाना दिया जाए और खाती भी तभी जब उसके साथ बैठ कर हम भी नाश्ता कर रहे होते.
फिर दिन भर कमरे में इधर उधर हो रही हरकतों पर नज़र रखती जैसे सबकी सुपरवाइजर हो. घर की महरी को तो शुरू में चोको ने कोई तवज्जो नहीं दी. महरी भी उस से डरती रही. फिर एक दिन मैंने पहल कर के दोस्ती करवा दी . फिर तो उस दिन के बाद से चोको ने कभी उसे तंग नहीं किआ .इसके उलट अब भी वो पोंछा कर रही होती, तो चोको उसके सूख जाने का इन्तेज़ार करती. खाने की बेहद शौक़ीन थी चोको, आमतौर पे हर जानवर होता है, पर बहुत ज्यादा आत्मसम्मान था उसमे , कभी अगर गुस्से में खाना दे दिया जाए उसे तो तय है कि वो उसे छुएगी भी नहीं, फिर चाहे दिन भर ही भूखी क्यों न बैठी रहे. , हमसे जितना प्रेम था उसे उतने ही अधिकार से वो गुस्सा होती थी हमसे. घर में क्या करना है कैसे करना है ये नियम हम बनाते थे . पर प्रेम के गुर वो हमे सीखा रही थी.
एक बार हमने उसे कमरे के बाहेर हॉल में छोड़ दिया था और हम दोनों की ही आँख लग गयी. और कमरे का दरवाजा वातानुकूलित के वजह से बंद कर दिया था, ध्यान ही नहीं रहा की चोको बाहेर है. उस दिन वो पूरी शाम भर हमसे गुस्सा रही. ना बात की , न मिलने आयी, और इतनी गुस्सा थी की हमारी ओर देख भी नहीं रही थी. फिर बाद में उससे जाके हम दोनों ने बात की तब जाके मानी. आपको आश्चर्य होगा ये वाकिया पढ़ के की क्या वाकई में ऐसा हो सकता है. पर मैं कहूँगी की आप किसी को ह्रदय से प्रेम करिये, वो प्रेम आपको भी यक़ीनन मिलेगा.
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