शुरुवात खीझ भरी हुई थी चोको के साथ, पर उसे तो जैसे दिल जीतना आता था . मैंने अपने जीवन में कभी कोई पालतू जानवर नहीं पाला था इसलिए एकदम से लगाव होने का सवाल ही नहीं था. मुझे कुत्तो से तो खासकर डर लगता था क्यूंकि काट लिए गए तो 14 इंजेक्शन तो पक्के हैं वो भी पेट में ( यही कह कर कभी माँ ने कुत्ते पालने नहीं दिए ) और पॉमेरियन , ल्हासा वगरैह तो फिर भी छोटे और झबरे होते हैं, उन्हें देख कर ही खेलने का मन कर जाता है. पर जर्मन शेफर्ड .. उफ़ .. ना बाबा ना.
पर चोको आम कुत्तो जैसी तो थी ही नहीं , डील डॉल से जरूर शिकारी थी , पर हरकतों से तो जैसे माँ हो , मादा थी ये वजह थी या अमित से प्रेम, जो भी कह लीजिये पर प्रेम करना , परवाह करना जैसे उसका प्रमुख कर्तव्य हो. अमित खाने बैठे तो उनके बगल में बैठ जाना , वो जाए तो उनके पीछे पीछे जाना, उनसे जबरदस्ती लाड करवाना , अपना पट्टा लाके उन्हें देना और कहना की चलो घूमने जाने का समय होगया. कभी लगा ही नहीं की वो एक जानवर है , लगा जैसे घर का अभिन्न सदस्य है. जो आपकी मेरी तरह खाता पीता है, उठता बैठता है, सुनता समझता है , हँसता बोलता है बस अपने तरीके से.
उससे ना चाहते हुए लगाव होने लगा , क्यूंकि उसके भाव सरल थे . बार बार कमरे से बाहर निकाल दिए जानेके बाद अमित भी जब उसे अंदर नहीं ला पाए तो वो समझ गयी अब वो मेरी सहमति के बिना अंदर तो नहीं आ पाएगी. और उस सहमति को पाने के लिए पहले दोस्ती करनी भी तो ज़रूरी थी . अमित का मनुहार पर और कुछ उसकी सरल आँखों के बाहुपाश मे बंध कर मैंने उसे सहलाया , सर पर.., पहले डर से .. और फिर उसडर की जगह कब प्रेम ने ले ली पता ही नहीं चला . शायद इसे ही प्रेम कहते हैं .