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चुराने

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न भूलो उनको।गैरों की तरह जब अपने देखने लगे।सच मे अपने और भी प्यारे लगने लगे।ता उम्र जिंदगी बिता दी हमने सबके लिए।सबने बस एक सलीका दिया, ज़िंदगी जीने के लिए।अब हाथो का हुनर, मशीने छीनने सी लगी।अब शोर कानो को, धुन सी लगने लगी।जिए हम भी थे, कभी शांती को जवानी की तरह।अब वह भी मुँह चुराने लगी, एक मोरनी की

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