आप सभी को सादर नमस्कार,
मैं ओमकारिणी कसौधन लगभग रोज दैनंदिनी से अपनी
बातें कहती हूँ, हाँ ये अलग बात है कि कभी इसे ऑनलाइन कभी ऑफलाइन लिखती हूँ। आज
यहाँ लिखने का मन्तव्य है हिन्दी की दुर्दशा। जी हाँ, आने वाले दो महीने बाद फिर
से हिन्दी दिवस के नाम पर खानापूर्ति की जाएगी, लेकिन हिन्दी की दशा नहीं बदलेगी।
यह मैं किसी मनोव्यथा के कारण नहीं कह रही हूँ। चूँकि मैं एक सरकारी कर्मचारी हूँ
और प्रतिदिन हिन्दी के कारण मुझे अपने ही कार्यालय में कुछ न कुछ झेलना ही पड़ता
है, जो आज भी जारी रहा। मैं दिल्ली में रेलवे मुख्यालय पर कार्यरत सरकारी कर्मचारी
हूँ और हिन्दी आशुलिपिक हूँ। मेरे पास रोज काम बहुत ज्यादा होता है, हमेशा की तरह
आज भी है, लेकिन आज मेरी अधिकारी ने मुझे बुलाकर बुरा-भला कहा जिससे मेरा मन खिन्न
हो गया। उनके पास काम बहुत है यह बात सही है लेकिन आप काम हिन्दी में नहीं कर सकते
बल्कि आप दूसरे को अंग्रेजी में काम करने के लिए पिछले छः महीने से मजबूर कर रही
हैं। यह बात कहाँ तक सही है, आप सभी पाठक से निवेदन है मुझे कमेंट कर के जरूर बताएं।
मैं हिन्दी आशुलिपिक हूँ और डिक्टेशन भी हिन्दी में ही लेती हूँ, बाकी सारे काम तो
कर ही रही हूँ इंगलिश में। कभी-कभी मन बहुत परेशान हो जाता है कि आखिर लोग इंगलिश
में लिखने में इतना कंफर्ट कैसे हो सकते हैं, देखिए मैं भी इंगलिश के शब्दों का
इस्तेमाल कर रही हूँ, लेकिन ऐसा नहीं है कि मैं इंगलिश टाइप नहीं करती या लेटर
नहीं बनाती। सब कुछ तो कर रही हूँ, लेकिन मेरी अधिकारी ने कल कार्यालय आने में
थोड़ी सी देरी होने पर मेरा स्पष्टीकरण ले लिया और उसे आधार बना कर मुझे हटाने के
लिए लेटर भी लिख डाला। मेरे लिए अच्छा ये है कि मुझे सच में यहाँ से हटा कर कहीं
और लगा दिया जाए जहाँ केवल हिन्दी में काम हो न हो, लेकिन इस तरह मुझे रोज जलील तो
न किया जाए। मैंने आज की दैनंदिनी में बस अपनी समस्या लिखी है, ऐसा नहीं है कि
मेरा मन हमेशा परेशान रहता है, लेकिन न जाने क्यों दिखावा देखकर मेरा मन बहुत दुखी
हो जाता है। आज जो लोग फाइलों पर हिन्दी
लिखे जाने से कतरा रहे हैं वह सितंबर आते ही हिन्दी दिवस मनाने के लिए पूरे एक
हफ्ते हिन्दी लिखने का दिखावा करेंगे और उसके बाद फिर सब एक बस्ते में बंद हो
जाएगा। मैं चाहती हूँ कि आप स्वेच्छा से हिन्दी में लिखें, लेटर बनाएं और एक दिन
नहीं हमेशा करें ऐसा या तो कभी मत करें, लेकिन ये दिखावा करना और मेरे जैसे हिन्दी
वादी को प्रताड़ित करना बंद करें।