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<p>हैलो<br> डियर जिन्दगी, अभी भी व्यस्तता बहुत ज्यादा है। मन की भी और जीवन की भी। कल मैं मन<br> से य
आप सभी को सादर नमस्कार, मैं ओमकारिणी कसौधन लगभग रोज दैनंदिनी से अपनी बातें कहती हूँ, हाँ ये अलग बात है कि कभी इसे ऑनलाइन कभी ऑफलाइन लिखती हूँ। आज यहाँ लिखने का मन्तव्य है हिन्दी की दुर्दशा। जी हाँ,