कही लिखा होगा कही पढ़ा होगा कही कहा होगा कही सुना होगा
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प्रज्ञा अपराध अर्थातः सरस्वती का अपराध करना किसी का विचार अपने नाम लिखना किसी के चिंतन को अपने नाम बहा देना प्रज्ञा अपराध है --- शास्त्र ---
मे तुझे देखू , तू मुझे देख देखते देखते दोनों हो जाये एक नज़रो ने नज़र से मुलाक़ात कर ली रहे दोनों खामोश और बात कर ली बस मेे और तू दोनों "एक" ही है ---सूफी---
नेम जगावे प्रेम को प्रेम जगावे जीव जीव जगावे शूरता शूरता जगावे शिव तपेि सूरज से मिलते है तपना ज़मी को होता है निगाहे प्यार करती है तड़पना दिल को होता है तू तू करता तू भया तुझमे रहा ना तू वारी फेरी मे गय
सूरज रे जलते रहना सूरज रे जलते रहना करोडो की जिंदगी के लिए जगत की रोशनी के लिए सूरज रे जलते रहना सूरज रे जलते रहना लिखा है तेरे ही भाग्य में की तेरा जीवन रहे आग में सूरज रे जलते रहना सूरज रे जलते
वह वह रे मौज़ फकीरा दी वह वह रे मौज़ फकीरा दी कभी तो खाए चना-चावेना कभी लापटा लेवे खीरा दी वह वह रे मौज़ फकीरा दीवह वह रे मौज़ फकीरा दी कभी तो ओढे शाल -दुशाला कभी गुदड़ी-फटीया भीड