रचना और कवि
ऐे रचना तू समुन्दर है और,हम क्या एक बुंंद भी नहीं तेरी कृतियों से जग चले, मेरी कलमों से क्या तू नहीं तेरे शब्दों से, मेरे भाव लड़े, मेरे भावो से तेरे आव भड़े तेरी प्रतियो में सबकी प्रीत रहे, मेरी प्रीत से तेरी प्रतिया बहे जो समा ले इस बुंंद को तू , फिर कहा बुंंद-सागर रहे