क्या हिन्दू क्या सिख, क्या वैष्णव, ब्राह्मण, शैव और देवी के उपासक, इस दिन का सभी के लिए विशेष महत्त्व है। हिन्दू धर्म की सभी मान्यताओं के लिए इस दिन श्रद्धा और विश्वास से भर जाने के लिए कोई न कोई कारण हैं। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन बिना विचार के ही कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। इस प्रकार की प्रतिष्ठा सिर्फ अक्षय तृतीया और माँ नवदुर्गा के दिनों को ही प्राप्त है।
पतित पावनी माँ गँगा का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है और हो भी क्यों नहीं, भारत के उत्तरी खण्ड में लहलहाती फसलों को उर्वरा भूमि माँ गँगा की ही तो देन है। गँगा को साधारण नदी नहीं माना जाता है। कहा जाता है कि ईश्वर के वरदान स्वरुप भरत के पूर्वज भागीरथ के अथक प्रयासों से भारतवर्ष के मैदानों में उतारने से पहले भगवन शिव की जटाओं में नियन्त्रित होकर स्वर्ग से धरती पर माँ गँगा का अवतरण हुआ था। इसके जल में दैवीय तत्व विधमान होते हैं। तभी तो वर्षों वर्ष संचित करके घरों में रखा हुआ गंगाजल कभी भी सड़ता नहीं है। धार्मिक मान्यताओं के चलते या शायद गंगाजल के चमत्कारी औषधीय गुणों का महत्त्व समझते हुए ही हमारे सचेत पूर्वजों ने गँगा स्नान की परम्परा शुरू की होगी और जैसे कि सनातन धर्म में सभी सुकार्यों को सामान्य जन से अनुकरण कराने के लिए उन्हें धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़ दिया गया था उसी कड़ी में गँगा स्नान को भी हमारी धार्मिक और सामाजिक परम्पराओं से जोड़ दिया गया। जो भी हो, इस बात से कोई इंकार नहीं करेगा कि गँगा स्नान केअपने विशेष लाभ हैं। कहते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता दीपावली मनाते हैं। शायद इसीलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन गँगा स्नान का सर्वाधिक महत्त्व बताया गया है। स्नान के अलावा दीप दान और यज्ञ आदि को इस दिन बहुत पुण्य का कार्य माना जाता है।
मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही ब्रह्म देव पुष्कर नामक स्थान पर अवतरित हुए थे और तभी से लगातार श्रृष्टि के निर्माण के कार्य में लगे हुए हैं। भगवन विष्णु के दस अवतारों में से एक मत्स्य अवतार के रूप में भगवान कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही अवतरित हुए और धरती का कल्याण किया था। और भगवान शिव का तो निवास ही कैलाश पर है। शायद श्रृष्टि की तीनों शक्तियों के धरती पर इस दिन के सम्बन्ध की महत्ता के कारण ही देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा को दीपावली मनाने का निश्चय किया होगा और इस दिन स्वर्ग-लोक से धरती पर उतर कर नदियों के किनारे दीपावली मनाने के लिए आना तय किया होगा। और इस बहाने उन्हें स्वर्ग लोक से आकर धरती को अपना घर बनाने वाली माँ गँगा से भी मिलने का अवसर मिल जाता है। जो भी हो परन्तु यह अवश्य तय है कि समस्त हिन्दू एक मत से इस दिन को बहुत पवित्र मानते हैं। इस दिन की महत्ता सिख धर्म मैं भी बहुत क्योंकि गुरु नानकदेव जी का जन्म भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। गुरुद्वारों में, पवित्र सरोवरों के किनारे लंगरों का आयोजन और विशेष पूजा-पाठ किया जाता है। शायद भगवान श्रीराम के रावण विजय के उपरान्त अयोध्या लौटने जैसी सदियों में बुराई पर सच्चाई और अच्छाई की जीत के प्रतीक जैसी बहुत बड़ी घटना नहीं हुई होती तो कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही दीपावली मनाई जा रही होती। जो भी हो, कार्तिक पूर्णिमा के दिन एक सकारात्मक आध्यात्मिक अनुभूति तो अवश्य होती है।
@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"