देख रही है दुनिया सारी"
लाख आरोप लगा तू मुझ पर,
दम कहाँ तेरी गढ़ी कहानी में;
देख रही है दुनिया सारी,
कौन है कितना पानी में।।
क्या झूठ क्या ईमानदारी,
जाँच लेगी खुद जनता सारी।
तू कहता है मुझको लोभी,
मन किनका है बेईमानी में।
देख रही है दुनिया सारी,
कौन है कितना पानी में।।
कौन किनका छीन रहा है,
कौन कहाँ आसीन रहा है।
तू कहता है मुझे सितमगर,
होरा भून रहा कौन छानी में।
देख रही है दुनिया सारी,
कौन है कितना पानी में।।
मुझको तू दोषी कहता है,
निर्दोषी खुद को कहते फिरता है,
सबसे कहता है मुझे घमंडी,
है घमंड किनकी वाणी में।
देख रही है दुनिया सारी,
कौन है कितना पानी में।।
राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
9179798316