वो ह्रदय भी क्या ह्रदय है जिसमे स्वदेश प्रेम नही निर्भाव, पाषाण सा प्रतीत हो जिस ह्रदय मे देश प्रेम नही वो कलम भी क्या कलम है जिसने स्वदेश लिखा नही वो कवि भी क्या कवि है जिसमे स्वदेश बसा नही वो कविता
देशों में यदि सर्वोच्च देश बनना चाहो, पहले, सबसे बढ़ कर, भारत को प्यार करो । है चकित विश्व यह देख, धर्म के प्रतनु, प्रांशु पथ पर चल कर नय-विनय-समन्वित शूर लिये सबके हित कर में सुधा-सार,
(स्वर्गीय राजर्षि पुरषोत्तमदास टंडन के अभिनन्दन में) जन-हित निज सर्वस्व दान कर तुम तो हुए अशेष; क्या देकर प्रतिदान चुकाए ॠषे ! तुम्हारा देश ? राजदंड केयूर, क्षत्र, चामर, किरीट, सम्मान;
(कवि की साठवीं वर्ष गांठ पर) रेशम के डोरे नहीं, तूल के तार नहीं, तुमने तो सब कुछ बुना साँस के धागों से; बेंतों की रेखाएं रगों में बोल उठीं, गुलबदन किरन फूटी कड़ियों की रागों से । चीखें जब बनती
(एक रमणी के प्रति जो बहस करना छोड़कर चुप हो रही) क्षमा करो मोहिनी विपक्षिणी! अब यह शत्रु तुम्हारा हार गया तुमसे विवाद में मौन-विशिख का मारा। यह रण था असमान, लड़ा केवल मैं इस आशय से, तुमसे
राजमहल के वातायन पर बैठी राजकुमारी, कोई विह्वल बजा रहा था नीचे वंशी प्यारी। "बस, बस, रुको, इसे सुनकर मन भारी हो जाता है, अभी दूर अज्ञात दिशा की ओर न उड़ पाता है। अभी कि जब धीरे-धीरे है डूब रहा
उठो, क्षितिज-तट छोड़ गगन में कनक-वरण घन हे! बरसो, बरसो, भरें रंग से निखिल प्राण-मन हे! भींगे भुवन सुधा-वर्षण में, उगे इन्द्र-धनुषी मन-मन में; भूले क्षण भर व्यथा समर-जर्जर विषण्ण जन हे! उ
मृत्यु-भीत शत-लक्ष मानवों की करुणार्द्र पुकार! ढह पड़ना था तुम्हें अरी ! ओ पत्थर की दीवार! निष्फल लौट रही थी जब मरनेवालों की आह, दे देनी थी तुम्हें अभागिनि, एक मौज को राह । एक मनुज, चालीस
शादी हो जाने के बाद लड़की अपने महल में चली गई। बूढ़ी औरतें इधर-उधर खिसक गयीं। बहू की सहेलियां राव जी को उसके महल की तरफ ले चलीं। रास्ते में एक जगह गाना हो रहा था। कितनी ही चन्द्रवनी सुन्दरियां सुहाग क
दिन ढल गया। बाजार में छिड़काव हो गया। लोग बारात देखने के लिए घरों से उमड़े चले आते हैं। ज्योतिषी ने दरबार में जाकर राव से कहा– ‘‘अब अगवानी करने का समय पास आ गया है। अब सवारी की तैयारी का हुक्म दीजिए।’
आजादी का जश्न है हर ओर खुशहाली छाई है बड़ी-बड़ी कुर्बानियां देकर हमने यह आजादी पाई है पीढ़ीदर पीढ़ी गुलामी की बेड़ियां सही हमारे पुरखों ने जाने क्या-क्या यातनाएं पीड़ायॆंसही हमारे पुरखों ने जाने कितने
मातम के बाद घर में कोहराम मचा हुआ है। पिताजी की अस्थियां नहीं मिल रही
सैनिक तो सैनिक है ।
युद्ध हो या ना हो ।
सैनिक तो सैनिक है ।
शत शत नमन हमारा है। दूसरी सर्जिकल स्टाइक पर मेरी आसू रचना।। आज गर्व से
सचिन 16 साल का लड़का था।। बहुत ही होशियार बहुत ह