वो ह्रदय भी क्या ह्रदय है
जिसमे स्वदेश प्रेम नही
निर्भाव, पाषाण सा प्रतीत हो
जिस ह्रदय मे देश प्रेम नही
वो कलम भी क्या कलम है
जिसने स्वदेश लिखा नही
वो कवि भी क्या कवि है
जिसमे स्वदेश बसा नही
वो कविता क्या कविता
जिससे स्वदेश की बात ना हो
वो रचेयता भी क्या रचेयता
जीसने स्वदेश रचा नही
उन गजलो को क्या गाना
जिसमे स्वदेश अल्फाज नही
उन गीतो का क्या करे
जिसमे देश को सम्मान नही
उस माटी क्या करेंगे
जिसमे देश की महक नही
उस मस्तक का क्या करेंगे
जिसको देश पर गर्व नही
कविता गुज्जर