डॉ.निशा गुप्ता साहित्यिक नाम डॉ. निशा नंदिनी भारतीय का जन्म 13 सितंबर 1962 में उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में हुआ था। पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता रामपुर चीनी मिल में अभियंता थे और माता स्वर्गीय राधा
हैलो सखी कैसी हो।आज मेरा मन उदास है ।जब कोई लेखक मन से कोई काम करे और उसकी पेमेंट ना आये तो उसे बुरा लगता है हमारे साथ ऐसा हो रहा है एक मंच के लिए हम सहलेखन कर रहें है हमने इतनी मेहनत करके दस पार्ट लि
1. पथएक विशाल सा पहाड़ है खड़ा। अनेक पथ को खा गयाये दानव बड़ा.. कभी किसी पुराण काल मे
चलो दुनियादारी के उस पार चलेजिंदगी के इस दौड़ वाली पलो सेचलो निकल चलेकितनो ने दिल दुखया चलो भूल जाते हैकितनो ने मेरे साथ किया बुरा है चलो उसे छोड़ जाते हैक्यों मैं सब को सोच कर खुद ही सजा देतेजाऊ&n
19 - apr - 2022क्या सचमुच मुझे ये डायरी लिखनी चाहिए पर मैं रोज - रोज लिखुंगा क्या इसमें। लिखने लायक कोई
जब भी कोई वस्त नई नई लाते हैं तो वह बहुत अच्छी लगती है । यही स्थिति जिंदगी की है जब जिंदगी नई नई मिलती है एक छोटे से मासूम बच्चे के रूप में , तब उसको सब प्यार करते हैं खुशियां बरसाते हैं लगता ही नहीं
ये कहानी शुरु होती है, निशा से! निशा यू तो भरा पुरा परिवार रहा है उसका, पर उसी परिवार के बीच हर किसीसे जूडे हेने के बावजूद अपना अलग वजूद की तलाश में अकेले सबसे दूर रहती, निशा! निश
हैलो सखी। कैसी हो। आज ही कुरियर वाला हमे हमारा ईनाम देकर गया है। हमारे छोटे सपूत दौड़ कर गये और कुरियर वाले से ईनाम लेकर सब को दिखाया कि हमारी ममा ने ईनाम जीता है ।सच मे सखी बड़ी खुशी हो र
बनारस के छोटे से गाव से सरिता और सुमित मुंबई रोजीरोटी की तलाश में आये थे, कुछ साल पहले कितनी खुशहाल जिंदगी थी दोनों की, अपने परिवार के साथ इतनी खुशियाँ बटोरने में दोनों जुट गये थे
प्रिय सखी। कैसी हो ।आज गाना गाने का मन कर रहा है पूछोगी नही कौन सा ।यही "इंतजार है है है तेरा इंतज़ार है।अब तुम कहोगी सखी तो बोरा गयी है । नही सच मे मुझे इंतज़ार है अपने ईनाम आने का ।अब ये नही प
दुकान के किसी कोने में, रखा रहता था। माॅल की कोई रैक पर, सजा रहता था। लोग सामान लेते, उसे कर देते थे अनदेखा। टुकुर टुकुर वह देखा करता, कैसी उसकी भाग्य रेखा।कोई नहीं पूछता उसको, रहता था
चैत्रेमासि सिते मक्षे हरिदिन्यां मघाभिधे। नक्षत्रे स समुत्पन्नो हनुमान रिपुसूदनः।। महाचैत्री पूर्णिमायां समुत्पन्नोऽञ्जनीसुतः। वदन्ति कल्पभेदेन बुधा इत्यादि केचन।। अर्थात्-चैत्र शुक्ल एकादशी के द
हैलो सखी कैसी हो।हमे कल ही शैलेश जी का दूरभाष के माध्यम से संदेश प्राप्त हुआ कि डायरी लेखन प्रतियोगिता का इनाम हमे भेज दिया गया है।मन बहुत प्रसन्न है इनाम चाहे
*दुआ *दिन रात मेरी दुआओं में बस तुम्हारे लिए ही फरियाद है। मिल जाए तुम्हें वो मंजिल जिसकी तुम्हें न जाने कब से तलाश है। तुम्हारी जीत भरी मुस्कान हम सबके लिए खुशी का पैगाम लेकर आय
*ईश्वर कृपा क्या है?*पैसा, आलीशान घर, महंगी गाड़ियां और धन-दौलत ईश्वर_कृपा नहीं है।इस जीवन में अनेक संकट और विपदाएं जो हमारी जानकारी के बिना ही गायब हो जाती हैं, *वह ईश्वर कृपा है।*कभी-कभी सफ़र के दौर
"ये हरियाली" बड़े प्यार से अंकुरित होकर धरती मां का सिंगार बन जाते हैं ये हरियाली। हवा में फैले जहर को खुद में समेट कर। ऑक्सीजन रूपी अमृत की वर्षा करते हैं ये हरियाली।वातावरण को हरा-भरा
आज दो पुण्य आत्माओं की जयंती हैं। इसलिए आज की दैनंदिनी उनके नाम है। डाॅ. आम्बेडकर- एक ऐसे महापुरुष जो दलितों के मसीहा थे जिन्हें सारा संसार डाॅ. आम्बेडकर के नाम से जानता है। जिन्होंने अपने आदर्शो
सुहास और संजना करीबन २१-२२ साल के दिल्ली के कॉलेज में जानेवाले विद्यार्थी है, काफी अच्छी दोस्ती है उन दोनों की, झगडना और कई कई दिनों तक मुंह मोड लेना ये तो आम सी बात है, उनका चार द
डाॅ. भीमराव आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के अम्बावड़े गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीरामजी सकवाल तथा माता का नाम भीमाबाई था। उनके "आम्बेडकर" नाम के मूल
कोशिश सफलता की कुंजी होती है ।एक छोटी सी कोशिश भी सफलता की तरफ कदम बढ़ाती है । कोशिश करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि कोशिशें इंसान को सफलता की सीढ़ी पर पहुंचाता है ।