नौ साल का गरीब लड़का दौड़ता हुआ अपनी विधवा मां के पास जाकर बैठ गया।वह हाफ रहा था। उसकी ऐसी स्थिति देखकर मां बोली"क्या बात है मोहन? इतना हाफ क्यों रहे हो?"अपनी मां की बात सुनकर मोहन बोला"मां, मेरे सभी दोस्त अभी मेला देखने जाएंगे। इसके बाद, देवी मां की दर्शन करेंगे। इतना कहकर वह चुप हो गया।अब वह आराम महसूस कर रहा था।
"तब तो अच्छी बात है मोहन। नवरात्रि का त्योहार है, और देवी मां की पूजा करनी चाहिए।"मां अपने बेटे की माथे पर प्यार से हाथ रखकर बोली।तब अपनी मां की बातें सुनकर मोहन बोला"लेकिन, मै भी जाना चाहता हूं। मुझे भी रुपए दो।"यह सुनकर विधवा मां खामोश हो गई, क्योंकि घर में थोड़े से ही रुपए थे।उन रुपयों से वह अपना इलाज करवाना चाहती थी। हालांकि, मोहन की विधवा मां अपनी ही मोहल्ले में रहने वाले तहसीलदार साहब के घर जाकर घरेलू काम किया करती थी।उससे घर चलता था। फिर भी वह मोहन के पास से उठी, और रुपए लाकर उसे दे दी। मोहन बड़े ही प्रसन्न होकर मेला देखने चला गया।जैसे ही वह घर से थोड़ी दूर गया,उसी की गांव की रहने वाली बूढ़ी काकी उसे रोककर बोली"अरे मोहन, जरा रुको तो।"
बूढ़ी काकी की आवाज सुनकर मोहन रुक गया, और बोला"बोलो काकी, क्या बात है?"तब काकी बोली"तेरी मां की तबियत कैसी है? वह ठीक है ना!"
यह सुनकर मोहन को हैरानी हुई, क्योंकि अपनी तबियत के बारे में उसकी मां कुछ भी नहीं बोली थी।लेकिन, इतना सुनते ही मोहन तुरंत अपने घर गया। देखा... उसकी मां बिस्तर पर लेटी हुई है। बदन छुआ तो बुखार था। मोहन का स्पर्श पाते ही मां आंखें खोली। फिर बिस्तर पर बैठ गई। किंतु यह क्या? मोहन अपनी मां की गोद में सिर रखकर बोली"यह क्या मां, तुम्हारी तबियत खराब है और तुम बोली भी नहीं।"यह सुनकर मां बोली"क्या बोलती मोहन, तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है।"
तब मोहन बोला"मां, मैं मेला देखने नहीं जाऊंगा। बल्कि, मेरे लिए तो तुम ही देवी मां हो। तुम्हारी सेवा करूंगा तो देवी मां खुश हो जाएंगी।अब, मै इन्ही रुपयों से तुम्हारे लिए दवाई लेने जा रहा हूं।"अपने बेटे की बातें सुनकर विधवा मां की आंखें नम हो गईं। उसने मोहन की माथे को प्यार से चूमा,और अपने सीने से लगा ली। किंतु, इसके साथ ही आसूं की अविरल धारा बहने लगी।