सुबह का समय था। मै बरामदे में बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था। इसी बीच, मुझे शोर_गुल सुनाई पड़ा। मै अखबार को वही मेज पर रख कर आवाज की तरफ चल दिया। जैसे ही मैं अपनी द्वार से बाहर आया, देखा मेरे घर से थोड़ी ही दूरी पर मेरे मोहल्ले के लोग इकट्ठा हुए हैं। आखिर बात क्या है? यही सोचकर मैं भी गया। देखा, मेरे चीर_परिचित मित्र घनश्याम एक रिक्शे वाले से उलझ रहा है। जैसे ही, उसने मुझे देखा तो हैरान होकर बोला"अरे भाई तुम ही अब फैसला करो।"तब, सबसे पहले मैने अपनी सूझबूझ से वहां इकट्ठा हुए भीड़ को चले जाने का निवेदन किया।
चुकी, सारे मोहल्ले में मेरे स्वभाव के कारण सभी लोग मेरी बहुत ही इज्जत करते हैं, और ज्यादातर मेरी बातों को मानते हैं। इस तरह,है सभी लोग चले गए तब मैंने झगड़े का कारण पूछा।तब, मुझे मालूम हुआ कि मेरे मित्र घनश्याम से रिक्शेवाला वाजिब रुपए मांग रहा था, जबकि उनको ज्यादा रुपए लग रहा था। खैर, किसी प्रकार से मैंने विवाद को सुलझा दिया, और रिक्शेवाले को रुपए दिलवाकर अपने मित्र से अलविदा कहा। चुकी, मुझे ऑफिस जाना था।
जब घर आया तो पत्नी शालिनी चाय रखकर मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे देखकर बोली"कहां चले गए थे?"तब, मैंने सारी बाते बताई,और शालिनी से कहां"घनश्याम,जब कम रुपए कमाता था तब गरीबों की मजबूरी समझता था।आज उसे बेहतरीन काम मिल गया है। अच्छा _खासा रुपए कमा रहा है। जब आर्थिक स्थिति खराब थी,तब बेचारा भला आदमी कहलाता था। मगर,आज... ।"इतना कहकर मैं चाय पीने लगा।तब शालिनी बोली"क्या रुपए सच में भले आदमी को भी बदल देती है?"यह सुनकर मैं मुस्कुराते हुए बोला"शालिनी,आज के जमाने में कोई भी भला आदमी नहीं है। हां, इतना तो मान लो। भला आदमी वही हो सकता है जिसके पास गरीबी है।"इतना कहकर मैंने चाय को समाप्त किया, और ऑफिस जाने के बाद तैयार होने लगा।