रविवार का दिन था। ऑफिस बंद था।आज कोई काम करने का मन नहीं कर रहा था, और ना ही कुछ लिखने का मन कर रहा था। हां, इसी क्रम में मुझे चाय पीने का मन हुआ,तब मैंने अपनी श्रीमती को आवाज लगाई"अरे दीपांजलि,जरा मेरे लिए चाय बना दो।"उस समय वह रसोई घर में ही काम कर रही थी। दीपांजलि जानती है कि मैं चाय का शौकीन हूं।इसी बात को लेकर वह कभी_कभी मुझे ताने भी मारती थी।उस समय मैं अपने कमरे में आराम कुर्सी पर आराम कर रहा था।इसी बीच मेरी नजर एक बहुत ही पुरानी डायरी पर गई,जो मेरी ही थी। मै उठकर गया,और उसके पन्नो को पलटकर देखने लगा। उसी डायरी में मुझे एक पुराना खत मिला।
फिर मैं उसे पढ़ने लगा।इसी बीच, श्रीमती चाय लेकर आई। मेज पर चाय को रखकर मेरी तरफ देखकर बोली"क्यों राइटर साहब, क्या पढ़ रहे है?फिर इतना कहकर वह सामने रखी गई कुर्सी पर बैठ गई। मैं उसकी तरफ मुस्कुराते हुए बोला"अब लो,तुम ही इसे पढ़ लो।सब पता चल जाएगा।"इतना कहकर मैंने खत बढ़ा दिया,और चाय पीने लगा।
वह कुछ नहीं बोली,मगर हैरान जरूर हो गई थी। खत को पढ़ लेने के बाद वह मुझसे बोली"एक सवाल का जवाब दीजिए। इस पत्र को अभी तक रखने का मकसद क्या है?"इतना कहकर वह मेरी तरफ प्यार से देखने लगी। अपनी पत्नी की बात सुनकर मैं बोला"जानना चाहती हो तो सुनो,यह छिपाने वाली कोई बात नहीं है।यह तो प्यार का पहला खत है।जिसे मैने केवल,और केवल तुम्हारे लिए लिख कर रखा था। मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूं, जितना शादी से पहले करता था। हमारी मोहब्बत की पहली निशानी है, यह प्यार का पहला खत।