shabd-logo

धित्कार…

25 जून 2016

228 बार देखा गया 228
featured image

कद छोटा, बढ़ाने की ख्वाहिश,
करता बढ़ने की आजमाइश,
माँ के रूप में पड़ोसन आई,
खाने को दी बढ़ने की दवाई,
कद बढ़ने का अर्थ खो गया,
पेट में भयंकर दर्द हो गया,
चीखते-चीखते ख़ामोशी छाई,
जीवन की आखिरी नींद आई,
जाने से पहले इतना बताया,
पड़ोसन आंटी ने दवा खिलाया,
बच्चे में कोई दुर्भावना न थी,
पड़ोसन में माँ की भावना न थी,
छोटी बात का था यह झगड़ा,
फिर यह कैसा हो गया रगड़ा,
ममता का यह क्रूर स्वरुप,
जैसे किसी दानवी का रूप,
छल से बच्चे को मार दिया,
ममता की गोद उजाड़ दिया,
ऐसी नारी को धित्कार…….
ममता में क्रूरता नहीं स्वीकार ।

विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com

विजय कुमार सिंह की अन्य किताबें

विजय कुमार  सिंह

विजय कुमार सिंह

अज्ञानता में हम किसी के बच्चे को अपनी मर्जी से दवा नहीं दे सकते. यह डॉक्टर का काम है.

27 जून 2016

स्नेहा

स्नेहा

इसे क्रूरता नही अज्ञानता कहेंगे.

25 जून 2016

1

धित्कार…

25 जून 2016
0
3
2

कद छोटा, बढ़ाने की ख्वाहिश,करता बढ़ने की आजमाइश,माँ के रूप में पड़ोसन आई,खाने को दी बढ़ने की दवाई,कद बढ़ने का अर्थ खो गया,पेट में भयंकर दर्द हो गया,चीखते-चीखते ख़ामोशी छाई,जीवन की आखिरी नींद आई,जाने से पहले इतना बताया,पड़ोसन आंटी ने दवा खिलाया,बच्चे में कोई दुर्भावना न थी,पड़ोसन में माँ की भावना न थी,छोटी ब

2

सेल्फी

27 जून 2016
0
3
0

स्मार्ट फ़ोन, सेल्फी की धुन,जोश में लिए सपने बुन,कहीं सरिता के जल गहरे,कहीं रेलवे ट्रैक पर ठहरे,कभी बोगी के द्वार लटके,कभी मुंडेर के ऊपर अटके,कहीं हवा में गोता खाते,देखनेवालों के जी घबराते,अपनी धुन, अपनी मनमर्जी,मस्ती भरी होती खुदगर्जी,अपने हाथों, अपने तरीके,खींचें तस्वीर बिना सलीके,अक्सर शेखी पड़ती भ

3

सफ़ेद शेर

29 जून 2016
0
1
0

हो लुप्त प्राय से तुम प्राणी,अब तुम कुछ ही शेष हो ।आभा है जन-जन को प्रिय,तुम रंग-रूप से विशेष हो,दुनियाभर के चिड़ियाघर में,तुम बड़े जीव विशेष हो,बन राजा के कृपापात्र,मोहन के वंश प्रवेश हो ।हो लुप्त प्राय से तुम प्राणी,अब तुम कुछ ही शेष हो ।अब कुछ संख्या में पले-बढे,दुनिया के क्षितिज पर उभरे,वापस तुमको

4

आओ मिलकर देश सजाएँ

30 जून 2016
0
0
0
5

खफा मोहब्बत

2 जुलाई 2016
0
2
0
6

जन्नत की आग

13 जुलाई 2016
0
2
1

जन्नत की आगबढ़ चला है ताप अब,बर्फ को पिघलने दो !रोको विष, न रुको, कदम को बढ़ा चलो,आक्रोश में शिखर को थोड़ा पिघलने दो,बन चला है जंगल, अब न रहा जन्नत,काँटों के झुर्मुठों को थोड़ा तो सुलगने दो,रहो सजग, मन में न विष कोई घुल पाये,थाम लो फूलों को, न काँटों संग पलने दो ।बढ़ चला है ताप अब,बर्फ को पिघलने दो !सह प

7

नर पिशाच

27 अगस्त 2016
0
2
0

8

सूरज कई होते (गजल)

7 सितम्बर 2016
0
0
0

9

माँ

8 सितम्बर 2016
0
0
0

10

वक़्त जो थोड़ा ठहरता…

22 अक्टूबर 2016
0
0
0

11

गुरु गोविन्द सिंह चालीसा

31 दिसम्बर 2016
0
1
1

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए