स्मार्ट फ़ोन, सेल्फी की धुन,
जोश में लिए सपने बुन,
कहीं सरिता के जल गहरे,
कहीं रेलवे ट्रैक पर ठहरे,
कभी बोगी के द्वार लटके,
कभी मुंडेर के ऊपर अटके,
कहीं हवा में गोता खाते,
देखनेवालों के जी घबराते,
अपनी धुन, अपनी मनमर्जी,
मस्ती भरी होती खुदगर्जी,
अपने हाथों, अपने तरीके,
खींचें तस्वीर बिना सलीके,
अक्सर शेखी पड़ती भारी,
दुर्घटना घटने की तैयारी,
कोई जान से हाथ धोता,
कोई बुरी तरह जख्मी होता,
जोश से पहले सोच नहीं,
करते क्या यह होश नहीं,
जीवन मोल समझ न आया,
तुच्छ शौक में सब गंवाया,
बाट जोहते नयनों का ख्याल,
भूले सब, रह गया सवाल,
नहीं सोचा वो कैसे सहेंगे,
विपदा अपनी किससे कहेंगे,
कतरा-कतरा आखिरी पल,
शेष बचे जीवन का कल ।
जब जागो तब हुआ सवेरा,
जीवन से दूर करो अँधेरा ।
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com