भविष्य की किताब बनाम किताब का भविष्य
किताबें कुछ कहना चाहती हैं.
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं.
लिखा था सफ़दर हाशमी ने. और सच ही तो लिखा था. न जाने कितने लंबे समय से किताबें हमारी दोस्त हैं. उनके रंग-रूप बदले, हाथ से लिखी जाने वाली किताबों की जगह छापे खाने से निकली किताबों ने ले ली, लेकिन उनसे हमारा रिश्ता नहीं बदला. बल्कि और मज़बूत