डॉ. राकेश जोशी की हिंदी ग़ज़लें
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हमें हर ओर दिख जाएं, ये कचरा बीनते बच्चे
भुलाए किस तरह जाएं, ये कचरा बीनते बच्चे
यही है क्या वो आज़ादी कि जिसके ख़्वाब देखे थे
ये कूड़ा ढूँढती माँएं, ये कचरा बीनते बच्चे
तरक्की की कहानी तो सुनाई जा रही है पर
न इसमें क्यों जगह पाएं, ये कचरा बीनते बच्चे
ये बचपन ढूँढते अपना, इन्हीं कचरे