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दुश्मनी बनाम सौहार्द ( कहानी अंतिम क़िश्त)

24 अप्रैल 2022

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(अब तक- निजाम  जल्द से जल्द धमधा अस्पताल पहुंच कर दोनों बच्चों को  चिकत्सकीय सुविधाएं उपलब्ध कराइ जाये । वरना बच्चों की जान भी जा सकती है ) इससे आगे---

लगभग आधे घंटे में वह किसी तरह भरी धूप में पैदल चलते हुए धमधा के सरकारी अस्पताल में पहुंचा। वहां के डाक्टर ने तुरंत ही बच्चों की जांच करके उनका इलाज प्रारंभ कर दिया । दोनों को आई वी बोतल भी चढा दिया । उसके बाद डाक्टर ने निज़ाम से कहा कि तुम इन्हें बिल्कुल सही समय पर ले आये वरना इन्हें चोट तो बहुत नहीं आई है पर धूप में पड़े रहने के कारण दोनों को  डिहाइड्रेशन हो चुका था, और कुछ देर होती तो जान जाने का ख़तरा था । थोड़ी देर बाद दोनों बच्चों को होश आ गया । तब निज़ाम ने उनसे कहा कि कोई घबराने की बात नहीं है । 1 घटे के अंदर तुम लोगों की छुट्टी हो जायेगी । तुम लोग कहां रहते हो तो बच्चों ने कहा कि हमारा घर बरहापुर में है । तब निज़ाम ने कहा मैं तुम लोगों को तुम्हारे घर तक छोड़ दूंगा  तुम लोग बेफ़िक्र रहो मैं आधे घंटे के अंदर वापस आऊंगा । तब तक  10 बज गये थे । निज़ाम ने दोनों को 2/2 बिस्किट दिया और कहा जब डाक्टर कुछ खाने की अनुमति दे तभी खाना वरना ज़ेब में रखना । फिर निज़ाम ने वहां उपस्थित वार्ड ब्वाय को यह बताकर कि मैं आधे घंटे के अंदर सहकारी बैंक से आता हूं तब तक आप बच्चों का खयाल रखना । 
बैंक से लगभग 1 घंटे बाद जब निज़ाम बच्चों को लेने हास्पिटल पहुंचा तो पता चला कि उनके घर के किसी आदमी को पता चला तो वह एक साथी के साथ आया और दोनों बच्चों को अपने साथ बरहापुर ले गये हैं । इस बीच निज़ाम को अपनी चोटों का खयाल आया तो उसने डाक्टर को दिखाकर मरहम पट्टी  भी करवा लिया और दवाएं भी प्राप्त कर ली । वह अब वापस अपने गांव धर्मपुरा जाने के लिए ड्रेसींग रूम से बाहर निकला तो बाहर कैंपस में उसे अपनी बीबी मुमताज़ बेगम दिख गई, जिसके माथे पर पट्टी लगी थी । मुमताज़ बेग़म ने बताया कि तुम्हें तो मालूम है कि मैं आज सुबह 8।30 बजे घर से परसबोड़ के लिए निकली थी । परसबोड़ जाते वक़्त बरहापुर चौंक के पास किसी सायकिल वाले ने मुझे ठोकर मार दी ।  उस ठोकर के कारण मैं कुछ देर के लिए बेहोश हो गई थी । वहां के कुछ लोगों ने मुझे धमधा हास्पिटल ले आया था मेरा इलाज कराने । अब मैं ठीक हूं अच्छा हुआ कि आप यहां मिल आ गये । चलिये अपने घर चलें । तब निजाम ने कहा कि तुम शायद मेरी ही सायकिल से जख्मी हुए हो । तुम्हें मेरी सायकिल से चोट लगने के कारण मुझे लोगों ने बहुत मारा है ।
चूंकि निज़ाम को अभी भी पैरों में दर्द था अत: उसे जब सायकिल चलाने में अड़चन  होने लगी तो मुमताज़ बी ने कहा कि आप आराम से आगे बैठो मैं सायकिल चलाती हूं । मुझे दर्द नहीं के बराबर हो रहा है । धीरे धीरे हम अपने गांव धर्मपुरा पहुंच जायेंगे । 15 मिनट चलने के बाद वे बरहापुर के पास पहुंच गये । उन्हें चौक पर 10—12 व्यक्ति डंडे लकर खड़े दिखे । उन्हें देखकर निज़ाम को यह बात याद आ गई कि उसने जाते जाते कुछ ऐसा कह दिया था कि बरहापुर वालों ने  कहा था कि तुम बरहापुर वापस आओगे तो तुम्हारी हड्डी पसली एक कर देंगे । उसने अपनी बीबी मुमताज़ को सारी बताते हुए अपनी चिन्ता ज़ाहिर की तो मुमताज़ बी ने कहा कि तुम चिन्ता मत करो मैं उन्हें समझा दूंगी । फिर एक औरत के ही सामने उसके पति को मारने का पाप तो कोई राक्षस टाइप का व्यक्ति होगा वो ही करेगा । वरना एक सामान्य आदमी तो ऐसा कभी भी न करने की सोचेगा । 
जैसे ही वे दोनों चौक पर पहुंचे कुछ लोगों ने उन दोनों को पहचान लिया । उनमें से दो व्यक्ति ने कहा कि यह वही औरत है जो सायकिल के सामने बैठे व्यक्ति की सायकिल से टकरा कर बेहोश हो गई थी और जिसे हमने धमधा हास्पिटल पहुंचाया था । फिर ये औरत उसी व्यक्ति के साथ कैसे एक ही सायकिल में बैठकर आ रही है । उनमें से एक व्यक्ति जो अभी अभी चौक पर आया था उसने कहा कि मैं तो दोनों को पहचानता हूं । जो मर्द है उसका नाम निज़ाम है और महिला तो उसकी पत्नी है जिसका नाम मुमताज़ है । अब डंडे लिए निज़ाम को मारने के लिए खड़े लोगों को लागा कि वस्तव में सुबह निज़ाम की सायकिल से उसकी ही बीबी मुमताज़ को ठोकर लगी थी । पर निज़ाम को यह नहीं पता चल पाया था कि उसकी सायकिल से चोटिल होने वाली महिला उसकी ही बीबी मुमताज़ भी । साथ ही मुमताज़ तो चोट खाते ही बेहोश हो गई थी । अत: वह भी नहीं जान पायी थी कि उसे ठोकर निज़ाम की ही साइकिल से लगी थी । उन्हें तर्क के तराजू में तौलने से लगा कि वह जान बूझकर अपनी पत्नी को चोट नहीं पहुंच सकता । इसका मतलब है कि वह एक दुर्घटना ही थी ।    
जब वहां के अधिकान्श लोगों को लगा कि अब निज़ाम को मारना पीटना उचित नहीं है । पर वहां उपस्थित शौकत जो निज़ाम से खुंदक खाता था । उसने फिर सरपंच को उकसाया कि अब तो बात यह नहीं है कि निज़ाम अक्सर बहुत ही रफ़ तरीके से चलाता है या नहीं ? अब तो मुद्दा है कि इस निज़ाम ने यहां से जाते जाते हम लोगों को धमकी दी थी । तो उसे सबक सिखाना ज़रूरी है वरना यह आगे भी ऐसी ही हरकतें करता रहेगा । इसका हौसला हम लोगों के विरुद्ध और बढ जायेगा । यह हमारा अपमान है । मारो इस दुष्ट निज़ाम को । शौकत के इतना कहते ही वहां उपस्थित बरहापुर कि लोग जोश में आ गये और निज़ाम को मारने के लिए आगे दौड़े।  जब मुमताज़ ने यह देखा कि लोग उसके पति को मारने आगे आ रहे हैं तो वह आगे सीना तान कर खड़ी हो गई । और कहने लगी कि इन पर हाथ उठाने के पहले आप लोगों को मुझे मारना होगा । आप लोगों ने इन्हें पहले भी बुरी तरह मार चुके हैं और फिर छोटी सी बात का आप लोग तिल का ताड़ बना रहे हैं । आप लोग पहले ग्राम धर्मपुरा जाकर वहां के निवासियों से पूछो कि मेरा शौहर कैसा आदमी है । अपने वार को खाली जाते देख शौकत ने फिर एक चाल चली वह मुमताज़ पर ही आरोप लगाने लगा कि यह औरत एक लोमड़ी जैसे चालाक है  । यह वक़्त ज़ाया कर रही है और हमें बरगला रही है । मारो साले निज़ाम को और उसकी औरत कुछ आड़े आये तो उसे भी अच्छे से सबक सिखाओ । तब बाक़ी कुछ लोग भी चिल्लाने लगे कि मारो सालों को । 10 मिनटों तक यही चलता रहा लोग चिल्लाते रहे कि मारो , मारो। इसके बाद पहले लोगों ने मुमताज़ बी को पकड़ कर वहां से ज़रा दूर कर दिया और निज़ाम को पेड़ में बांधकर उसे मारने की तैयारी करने लगे । 
निज़ाम को मारने के लिए सबसे आगे शौकत और सरपंच ही नज़र आ रहे थे । उधर मुमताज़-बी उपर वाले को याद करने लगी और मन ही मन कहने लगी कि हे ख़ुदा ये तेरा कैसा न्याय है कि एक बेकसूर आदमी को लोग मारने को उतारू हैं । और आलम ये है कि शायद उसे ये लोग मार ही डालें । ऐ मेरे ख़ुदा कुछ तो मदद करो, मेरे शौहर की रक्षा करो । उधर निज़ाम पेड़ में बंधे बंधे आंख मूंद कर एकदम शान्त खड़ा था और अपने आप को परिस्थिति के हवाले कर दिया था । उसे पूरा भरोसा था कि उपर वाला कुछ तो ऐसा करेगा कि एक निरपराध इंसान को इस परिस्थिति से मुक्ति मिल जायेगी । कुछ ऐसा करेगा कि लोग अन्याय के रास्ते पर न चल पायें व एक निर्दोष के प्राण न हर पायें । वह लोगों को ज़रूर सदबुद्धि देगा ही । 

शौकत और सरपंच जैसे ही निज़ाम के पास पहुंच कर उसे मारने डंडा चलाने वाले थे , वैसे ही कुछ बच्चे और कुछ औरतें चिल्लाते हुए उनकी ओर दौड़े । उनमें से एक महिला ने चिल्ला कर कहा कि ये तुम लोग क्या अधर्म का काम कर रहे हो। एक पुण्यात्मा को पापी समझकर उसे मारने को उतारू हो । भगवान तुम्हें कभी माफ़ नहीं करेगा । इतना सुनते ही सरपंच और शौकत के हाथ रुक गये । पीछे मुड़कर देखा तो दो औरतें और दो बच्चे उनकी तरफ़ दौड़ते आ रहे थे। उनमें से एक औरत शौकत की बीबी शकीला थी और दूसरी औरत सरपंच की पत्नी गायत्री थी । साथ में उन दोनों के बच्चे भी उनके साथ थे । हाथ रोकते हुए शौकत ने उनसे पूछा क्या हुआ ? तुम लोग क्यूं इस अधर्मी का पक्ष ले रहे हो ?  जवाब में शकीला ने कहा कि तुम्हें पता नहीं कि आज तुम्हारे बच्चों  के साथ क्या गुज़रा ? इतने में शौकत के बेटे मुहम्मद और सरपंच के बेटे गणेश ने आगे बढकर निज़ाम के पैर छूने लगे । और फिर वे दोनों निज़ाम के अगल बगल खड़े हो गये और अपने अपने पिता से कहने लगे कि क्या आप जानते हैं  कि आज हमारी प्राणों की रक्षा करने वाला शख़्स कौन है । निज़ाम जी ने हमारी प्राणों की रक्षा की है । फिर उन दोनों ने अपने साथ हुई घटना को विस्तार से बताया और कहा कि अगर निज़ाम चचा चोटग्रस्त होते हुए भी हमें धमधा हास्पिटल नहीं ले जाते तो पता नहीं हमारा क्या होता ? इतना सुनते ही शौकत और सरपंच विष्णु के हाथों से डंडे छूट गये और दोनों निज़ाम के पैरों पर गिरकर उनसे माफ़ी मांगने लगे । 
शायद मेरी ही गलती थी कि मैंने जाते जाते आप लोगों के विरुद्ध कुछ कड़वी बातें कह दिया था जिसकी सज़ा मुझे मिलने जा रही थी। लेकिन रस्ते में मुझे मेरे मौला ने मुझसे एक नेक काम करवा दिया जिसके कारण मेरे गुनाह के उपर मेरा पुण्य हावी हो गया और मेरे गुनाह को मेरे पुण्य काम ने हरा दिया । आज मैंने महसूस किया है कि गलत काम चाहे कैसा भी हो पुण्य कामों के आगे हार ही जाता है । 
उस घटना के बाद धर्मपुरा और बरहापुर वासियों के बीच बरसों से चली आ रही अदावत ख़त्म हो गई और दोस्ती इतनी प्रगाढ हो गई कि उनके बीच रोटी बेटी का भी संबंध होने लगा ।  धीरे धीरे समय के साथ दोनों गांव के बाहरी हिस्से में इतने मकान बन गये कि अब दोनों गांव की चौहद्दी को अलग लग दायरे में बांधना भी कठिन हो गया है ।

  ( समाप्त )
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दुशमनी बनाम सौहार्द
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निजाम एं बिजली मिस्त्री है वह एक दिन अपने गांव से 5 किमी दर दूसरे गांव जा रहा था तो उससे चिढने वाला एक बिजली मिस्त्री से उसकी झड़प हो गईं।

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