रंग दे तू अपने ही शब्दो के परे बिखरे रंग तेरे हर शब्द से छिटके वो रंग तेरे हर शब्द से ऐसा वो रंग हो बिन कहे वो संग हो शब्दो के अहसास से परे शहद की मिठास से परे कुछ बिखर कर देखना कुछ निखर कर देखना आंखो से ओझल भी न हो और नजरो में शामिल भी ना हो खुमार ऐसा पलको को गिरने ना दे भाव ऐसा आंखो को खुलने भी ना दे ऐसा ही रंग बिखरा तू अपनी कलम का की कागज कोरा हो और नज़्म समझ आ जाए ।
7 फ़ॉलोअर्स
5 किताबें