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कविता रंग

Manju

3 अध्याय
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रंग दे तू अपने ही शब्दो के परे बिखरे रंग तेरे हर शब्द से छिटके वो रंग तेरे हर शब्द से ऐसा वो रंग हो बिन कहे वो संग हो शब्दो के अहसास से परे शहद की मिठास से परे कुछ बिखर कर देखना कुछ निखर कर देखना आंखो से ओझल भी न हो और नजरो में शामिल भी ना हो खुमार ऐसा पलको को गिरने ना दे भाव ऐसा आंखो को खुलने भी ना दे ऐसा ही रंग बिखरा तू अपनी कलम का की कागज कोरा हो और नज़्म समझ आ जाए । 

kvitaa rng

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पुस्तक के भाग

1

दौर करीब का

21 अप्रैल 2022
2
1
1

जीवन में रंग भी भरे कुछ अजनबी से कुछ अनदेखे सेहोती कहा पहचान छू जाने सेजब रूह ही रूह को जानती हो सफर आसान न था हर कदमनया तूफान से भरा थाना कोई कस्ती न कोई साहिल ही खड़ा था फिर किसन

2

नव जीवन

21 अप्रैल 2022
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1
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खोल पंख अपने उड़ती आकाश में होचली उड़ती चली कह सी चली होकुछ चुलबुली सी कुछ मनचली सी ऐसी तितली चली हो ।रंग बिरंगे पंख पसारे ले चली वो हवा के सहारेऐसी लहराती बलखातीकभी गिरी कभी संभलती चली

3

एहसासो से परे

30 अप्रैल 2022
1
1
3

यू ही नहीं मिलता कोई लाखो करोड़ों की भीड़ में कितने जन्मों से तरसा होगा वो भी कितने पल मरा होगाजब जाके कही मिला होगा यूंही अनजान राही बन तब कही छिपा होगा ऐसा वो रह

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