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दुश्मनी बनाम सौहार्द ( कहानी प्रथम क़िश्त)

23 अप्रैल 2022

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*दुशमनी बनाम सौहार्द *  ( कहानी प्रथम क़िश्त)

दुर्ग ज़िले  की धमधा तहसील में धमधा ग्राम से 6 किमी दूर दो गांव हैं बरहापुर और धर्मुपुरा। दोनों गांव एक दूसरे के आमने सामने हैं । दोनों गांव के लोगों के बीच बरसों से न जाने क्यूं दुश्मनी चलते आ रही थी । अत: वे जब भी गांव से बाहर निकलते थे तो अधिकान्श समय समूह में निकलते और बहुत सारी सीटियां अपने पास रखते हैं ताकि संकट के समय सीटी बजाकर अपने लोगों तक अपनी आवाज़ पहुंचा सकें और मदद बुला सके। 
निज़ाम गंडई से कुछ महीनों  पूर्व ही धर्मपुरा आकर यहीं रहने लगा था । वह एक उम्दा बिजली मिस्त्री था । कुछ महीनों में ही लोग उसके हुनर की तारीफ़ करने लगे । और अब आस पास के गांव वाले अपने पुराने बिजली मिस्त्रियों की जगह बिजली संबंधित कामों के लिए निज़ाम को ही बुलाने लगे थे । निज़ाम को  धर्मपुरा और बरहापुर के बीच की वैमनस्यता के बारे में हल्का फ़ुल्का ही मालूम था पर वह उसे कभी गंभीरता से नहीं लेता था । आज जल्द बाज़ी में अपनी सायकिल उठाकर तेज़ी से अकेले ही धमधा की ओर रवाना हो गया । उसकी साइकिल में आगे एक सीट भी थी और पीछे कैरियर तो था ही ।  वास्तव में उसे धमधा से अपने मित्र अज़ीम का फ़ोन आया था कि तुम यहां के सहकारी बैंक में अपने पहचान का कोई भी कागज जमा करो वरना तुम्हारा खाते के संचालन को अस्थायी रुप से रोक दिया जायेगा । तुम ख़ुद का पैसा जो तुम्हारे खाते में कहीं से भी आया  उसे भी निकाल नहीं सकोगे । निज़ाम अक्सर ही बरहापुर के रस्ते को छोड़कर ग्राम कुटहा के रस्ते धमधा जाता था । आज भी उसने सोचा था  कि धमधा जाने के लिए बरहापुर वाले मार्ग से न जाकर पीछे से कुटहा ग्राम की ओर से जाऊंगा । पर बाद में उसे याद आया कि धर्मपुरा और कुटहा के बीच के नाले में बहुत ज्यादा पानी है । उसे सायकिल सहित पार करना उचित नहीं होगा । अत: मन मारकर व डरते डरते उसने बरहापुर वाले मार्ग से ही जाने का फ़ैसला किया । आज बैंक में कागज़ ज़मा करने उसे धमधा जाना ज़रूरी भी था । निज़ाम एक कम पढा लिखा बिजली का मिस्त्री था । कद काठी उसकी बुलंद थी और अक नज़र में वह किसी पहलवान सा लगता था । लेकिन मूल व्यहार से सीधा साधा इंसान था । दबंगई दिखाना उसने सीखा भी नहीं था । वह अड़चन के वक़्त लोगों की मदद करने में भी विश्वास रखता था । वह घर से इतनी  हड़बड़ाहट में निकला था कि उसे यह भी याद नहीं रहा कि उसकी बीबी मुमताज़ बी ने कल रात को उसे बताया था कि मैं कल सबेरे अपनी बहन की बीमार लड़की को देखने पैदल ही पास के गांव परसबोड जाऊंगी । वास्तव में ग्राम परसबोड ग्राम बरहापुर के ठीक बगल में स्थित था । अत: परसबोड जाने के लिए बरहा पुर को भी पार करना पड़ता था । उधर निज़ाम सायकिल निकालने के बाद अंदर की ओर मुंह कर जोर से कहने लगा कि मैं धमधा जा रहा हूं , घंटे दो घंटे के अंदर आ जाऊंगा । इतना कह के वह घर से निकल गया । 
जैसे ही वह बरहापुर के पास पहुंचा । सड़क पर सामने से बस आ रही थी । उसने अपनी सायकिल को तेज़ी से किनारे करने की कोशिश की पर गति ज्यादा होने और हड़बड़ाहट के कारण उसकी सायकिल से सड़क के किनारे से पैदल जाती हुई एक महिला को चोट लग गई । जैसे ही महिला को चोट लगी वह बेहोश होकर ज़मीन में गिर गई । यह देख निज़ाम डर गया और अपनी सायकिल की स्पीड बढाकर वहां से भागने लगा । उस जगह पर बहुत सारे लोग खड़े थे । उन्होंने जैसे ये देखा कि सायकिल सवार एक्सीडेन्ट करके भाग रहा है तो वे पकड़ो पकड़ो कहकर आवाज देने लगे । जिसके कारण वहा से 200 मिटर दूर जा रहे लोगों ने निज़ाम को पकड़ लिया । 

इस बीच दुर्घटना ग्रस्त महिला को कुछ लोगों ने कार में लिटाकर इलाज के लिए जल्दी से धमधा ले गये । उधर निज़ाम को जिन लोगों ने पकड़ा था । उनमें एक शौकत नामा का भी व्यक्ति था । वह निज़ाम को धमकाते हुए कहने लगा कि इस  व्यक्ति को मैं जानता हुं । यह धर्मपुरा का बाशिन्दा है । यह हमेशा अपनी सायकिल को बहुत तेज़ी से और रफ़ तरीके से चलाता है । यह पहले भी कई लोगों को ठोकर मार चुका है । आज भी देखो कैसे महिला को घायल करने के बाद फ़रार होने की कोशिश कर रहा था। आज तो इसे इसकी सज़ा मिलनी ही चाहिए। तभी यह सुधरेगा । इसे इतना मारो कि या तो यह सायकिल चलाना भूल जाये या फिर बरहापुर से आना जाना छोड़ दे । शौकत की बात सुनकर निज़ाम घबड़ा गया और कहने लगा यह शौकत झूठ बोल रहा है । पिछले पांच सालों में मेरे हाथों किसी को भी चोट नहीं लगी है । मेरी सायकिल की आज से पहले कभी भी दुर्घटना भी नहीं हुई है । यह शौकत भी मेरी तरह बिजली मिस्त्री का काम करता है पर हुनर में कमज़ोर होने के कारण अधिकान्श जगहों में इसकी जगह लोग मुझे ही बुलाना पसंद करते हैं । इसलिए शौकत मुझसे चिढता है । इसलिए ही आज मुझसे दुश्मनी निकालने का प्र्यास कर रहा है । मैं एक पारिवारिक इंसान हूं । दूसरों की तकलीफ़ों को वाज़िब रुप से समझता हूं । तब शौकत ने कहा कि मैं इस आदमी को अच्छे से जानता हूं । यह अपनी औरत को भी रोज़ पी खाकर कूटता है । इसमें इन्सानियत नाम की चीज़ है ही नहीं । यह दुष्ट प्रवित्ति का इंसान है । ऐसे लोगों को छोड़ना सीधे साधे लोगों के प्रति अन्याय होगा । शौककत का इतना बोलते ही वहां खड़े सरपंच और उसके चार पांच साथियों ने निज़ाम की जमकर पिटाई कर दी । निज़ाम भी बचाव में अपने हाथ पैर चलाता रहा लेकिन पांच व्यक्तिओं के बीच उसकी चल नहीं पाई और उसके हाथ पैर जब ढीले पड़ गये तब मारने वालों ने उसे वहीं छोड़कर चले गये ।
निज़ाम के शरीर का हर हिस्सा दर्द से भर गया था । उसने हिम्मत करके अपनी सायकिल उठाई और धीरे धीरे धमधा की ओर चल पड़ा । जाते जाते उसके मुंह से पता नहीं कैसे यह निकल गया कि तुम लोगों ने जबरन ही एक अकेले आदमी को 10 लोगों ने  मिलकर मारा है । अगर आप में से किसी की हिम्मत है तो मुझसे अकेले लड़कर देखो । धूल न चंटा दूं  तो मेरा नाम भी निज़ाम नहीं। इतना सुनते ही वहां खड़े लोगों ने उसे दूर से ही धमकाया कि अब तू वापस इधर से आकर देख तेरी हेकड़ी मिटा कर ही छोड़ेंगे । तब तक निज़ाम उनसे 50 मिटर दूर जा चुका था । वह तेज़ी से धमधा की ओर अग्रसर हो गया । कुछ दूर जाने के बाद  धमधा से 2 किमी पहले  उसे सुनसान जगह पर दो बच्चे सड़क पर बेहोश अवस्था में पड़े दिखे । लगता था कि किसी गाड़ी ने उन्हें ठोकर मारा था फिर गाड़ी वाला उन्हें उसी हलात में छोड़ कर भाग गया था । निज़ाम वहां रुकर दोनों बच्चे को उठाया तो दोनों के मुंह से कराह निकल रही थी । दोनों की सांसे चल रही थी । निज़ाम ने सिर उठा कर देखा तो पूरी सड़क सूनी थी कोई एक परिन्दा भी दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा था । उसे कुछ समझ नहीं आया तो उसने एक बच्चे को कैरियर में बैठा दिया और दूसरे कि सामने की डंडी बैठा दिया और उनको सहारा देते हुए खुद पैदल सायकिल को धकेलते हुए धमधा की ओर चलने लगा । वह रस्ते भर सोचते रहा कि जल्द से जल्द धमधा अस्पताल पहुंच कर दोनों बच्चों को  चिकत्सकीय सुविधाएं उपलब्ध कराई जाये । वरना बच्चों की जान भी जा सकती है । 

( क्रमशः )
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दुशमनी बनाम सौहार्द
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निजाम एं बिजली मिस्त्री है वह एक दिन अपने गांव से 5 किमी दर दूसरे गांव जा रहा था तो उससे चिढने वाला एक बिजली मिस्त्री से उसकी झड़प हो गईं।

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