शैलजा पाठक की नवीनतम पुस्तक 'पूरब की बेटियाँ' कथेतर विधा की उनकी पहली पुस्तक है। यह डायरी भी है, स्मृतियों का ब्यौरा भी और लगभग हर भारतीय लड़की की कहानी भी। तीन पीढ़ियों की स्त्री-दशा के जीवन्त चित्रण को पढ़ते हुए आँसू और मुस्कान साथ आते हैं।
शैलजा अपनी इस गद्य पुस्तक में दारुण स्थितियों को भी ऐसे खास कॉमिक अंदाज़ में प्रस्तुत करती हैं कि पाठक उन घटनाओं और स्थितियों को भूल नहीं सकता। वे पढ़ने वाले के दिलोदिमाग में गहरे तक पैवस्त हो जाती हैं।
शैलजा पाठक की लेखकीय शैली और भाषा की दृश्यात्मकता पूरी पुस्तक को, स्थितियों और घटनाओं को आँखों के सामने किसी चलचित्र की तरह जीवित कर देती है। देशज रंगों में रची-बुनी उनकी भाषा में एक साथ करूणा, हास्य बोध, दुख और विडंबना का मेल उनके लेखन को अद्भुत बनाता है।
भारतीय समाज में लड़कियों की स्थिति का जैसा बारीक चित्रण शैलजा ने इस पुस्तक में पेश किया है उसे हर तबके के स्त्री-पुरुष के लिए पढ़ना, जानना और महसूस करना ज़रूरी होना चाहिए।