पद्य का शीर्षक:- *एक ख़्वाब*
*पद्य:*- *एक ख़्वाब .......*
कल! ख़्वाब देखते देखते सारी रात हो गई
सुनाता हूँ तुम्हें एक गज़ब बात हो गई ||
चुपके से आकर तुम बैठी मेरी पास
फिर इशारों में वही पुरानी बात हो गई ||
करने लगे याद अपनी पहली मुलाक़ात
जब जाने अनजाने दिल की बात हो गई ||
हवा चलने लगी सर्द, बांहों में सिमट गए
कुदरत की बड़ी हसीन करामात हो गई ||
टूटकर बिखर गया बांहों में, होश खो बैठा
कल रात, मेरे यार, ऐसी वैसी बात हो गई ||
तूने सीने से लगा लिया मुझे होठों से चूमके
होश संभाला तो प्यार की बरसात हो गई||
बेशक़! खुदा ने दुनिया ख़ूबसूरत बनाई है
तुम मिली, और भी ख़ूबसूरत क़ायनात हो गई ||
मुद्दतों बाद लिखने बैठा कोई फ़साना मेरी 'बुलबुल'
देखा! बातों ही बातों में दिल की बात हो गई ||
लेखक-लोकेश कुमार 'रजनीश'
9785233909
पता -कामा, भरतपुर, राजस्थान