माता ब्रह्मचरणी माता पार्वती का ही स्वरूप है हिमालराज के यहाँ जन्म लेने के बाद एक बार नारद मुनि के मुख से भगवान शिव की महिमा और उनके रूप के वर्णन को सुनने के बाद देवी पार्वती महादेव को मन ही मन अपने पति के रूप में मनाने लगी ।
जब माता पार्वती के मन मे उत्सुकता हुई कि वह किस तरह भगवान शिव को प्राप्त कर सकती है । तब नारद जी ने सुंदर मुख वाली पार्वती जी को बताया कि हे देवी भगवान शिव माता सती के प्रकरण के बाद योग में समाहित हो गए है और वह घोर योग में खोए है ।
जिसके बाद माता पार्वती ने यह प्रतिज्ञा की वह घोर तप करेगी और भगवान शिव को प्राप्त करेगी ।
तत्प्रचात देवी पार्वती ने जंगल जाकर घोर तप किया । तीस हजार वर्षों के तप में देवी ने न जाने कितने वर्षो तक मात्र पात का सेवन किया , न जाने कितने वर्षों तक वह वायु को आहार के रूप में लेती रही , तप के करण देवी तपेस्वरी हुई और देवी के तप के करण तपोवन की उत्तप्ति हुई और देवी के तप के करण वन प्रकाशित हो गया और जिस प्रकार जीव में प्राण प्रकाशित होते है । देवी ब्रह्मचरणी स्वेत वस्त्र धारण करती है और ब्रह्मंड में सभी दिशाओं समाहित है अर्थात देवी सभी जीवो में विराजमान है । देवी सभी प्रकार की सिद्धि देने में सक्षम है । देवी वर देने में बहूत चातुर है देवी की नवरात्र के दूसरे दिन का महत्व है । देवी हाथों में माला और कमंडल धारण किये हुए है ।