माता पार्वती शंकर की दूसरी पत्नीं थीं जो पूर्वजन्म में देवी सती थी
सती के विपरीत माता पार्वती का स्वरूप अत्यंत सौम्य है देवी गौर वर्ण की है माता पार्वती निर्मल जल के समान है माता पार्वती के चेहरे पर हमेशा एक मंद मुस्कान छाई रहती है एवं देवी की छटा ऐसी है ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रकृति ने उनका सिंगार किया हो मां के बाल घुंघराले हैं और माँ के पास से प्रकृति को आनंदित करने वाली एक दिव्य मह आती रहती है माता पार्वती की त्वचा अत्यंत ही कोमल है उनकी त्वचा भीगी हुई प्रतीत होती है अर्थात जैसे माता के शरीर से जल निकल रहा हो माता पार्वती के समस्त अत्यंत कोमल और हंस की गर्दन स्वरूप में मां की गर्दन है तथा मां के नयन अत्यंत विशाल कमल के पुष्प की पंचूडियो की भांति है और उनके नेत्र उभरे हुए हैं। माता पार्वती के शरीर की आभा निकलते हुए सूर्य के किरणों की भांति है एवं माता पार्वती के एहसास से प्रकृति महक उठती है जैसे उसके एक नवीन ऊर्जा आ गयी हो और अपने सौंदर्य से वह देवी का सिंगार करती है माता पार्वती हिमालय राज की कन्या है माता पार्वती की भाव में अत्यंत तीव्र है और उनके होंठ अत्यंत छोटे और रक्त अनार की फूलों की भाँति हैं देवी एक दाँत छोटे और श्रंखला बद्ध है देवी हमेशा ध्यान मुद्रा में रहती है और भक्तों के कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहती है माता पार्वती सती देवी से कई मायनों में श्रेष्ठ है अर्थात देवी पार्वती अपने क्रोध को समाप्त करने वाली हैं देवी को शीघ्र क्रोध नहीं आता है अतः वह भक्तवत्सला है माता पार्वती को ही दुर्गा का स्वरूप माना गया है और भगवान शिव से विवाह के पश्चात वह शक्ति स्वरूप से जगत में विख्यात हुई ।
देवी के दो पुत्र है भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय